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Shardiya Navratri 2022  : देवी के इन नौ रूपों को समर्पित हैं शारदीय नवरात्र, जानें महत्व और उनकी महिमा

Shardiya Navratri 2022  : दुर्गा पूजा या नवरात्रि हिन्दुओं का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। नवरात्रि में हिन्दू देवी मां दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि का मतलब नौ रातें, इस दौरान दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह भारत के अलावा नेपाल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को लेकर अलग अलग लोगों की अलग अलग मान्यता है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

Shardiya Navratri 2022  : दुर्गा पूजा या नवरात्रि हिन्दुओं का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। नवरात्रि में हिन्दू देवी मां दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि का मतलब नौ रातें, इस दौरान दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह भारत के अलावा नेपाल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा को लेकर अलग अलग लोगों की अलग अलग मान्यता है।

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शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।

ब्रह्मचारिणी – जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।


चन्द्रघण्टा –भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।

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कूष्माण्डा – अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।


स्कन्दमाता – पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।


कात्यायनी- के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।


कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।

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 महागौरी- भगवती का आठवां स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।

सिद्धिदात्री-भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।

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