अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान सरकार बनाने जा रही है। इस सरकार में कौन-कौन शामिल होगा, इसको लेकर दुनिया भर में खूब चर्चा हो रही है। तालिबान की कमान हिबतुल्लाह अखुंदजादा के हाथों में है। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के राष्ट्रपति बनने की चर्चा के बीच मुल्ला मोहम्मद याकूब, सिराजुद्दीन हक्कानी, और शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanikzai) के भी सरकार में अहम जिम्मेदारी मिलने जा रही है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि तालिबान (Taliban) के शीर्ष नेतृत्व में शामिल बेहद कट्टर नेता स्टानिकजई (Stanikzai) का भारत से भी संबंध रहा है।
नई दिल्ली। अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान सरकार बनाने जा रही है। इस सरकार में कौन-कौन शामिल होगा, इसको लेकर दुनिया भर में खूब चर्चा हो रही है। तालिबान की कमान हिबतुल्लाह अखुंदजादा के हाथों में है। मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के राष्ट्रपति बनने की चर्चा के बीच मुल्ला मोहम्मद याकूब, सिराजुद्दीन हक्कानी, और शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanikzai) के भी सरकार में अहम जिम्मेदारी मिलने जा रही है। यह जानकर आपको हैरानी होगी कि तालिबान (Taliban) के शीर्ष नेतृत्व में शामिल बेहद कट्टर नेता स्टानिकजई (Stanikzai) का भारत से भी संबंध रहा है।
जानें कौन है शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई?
तालिबान के प्रमुख चेहरों में से एक शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई बेहद कट्टर धार्मिक नेता है। तालिबान की सरकार में उप मंत्री पद पर रहा चुका है। वह पिछले एक दशक से दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में रह रहा है। 2015 में उसे तालिबान के राजनीतिक कार्यालय का प्रमुख बनाया गया था। उसने कई देशों की राजनयिक यात्राओं पर तालिबान का प्रतिनिधित्व किया है।
शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई का भारत से क्या है संबंध?
शेर मोहम्मद अब्बास स्टानिकजई देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) Indian Military Academy (IMA)के 1982 बैच का कैडेट रह चुका है। यहां सहपाठी उन्हें ‘शेरू’ कह कर बुलाते थे। जब वह आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुआ था। तब वह 20 साल का था। उसके साथ 44 अन्य विदेशी कैडेट भी इस बटालियान का हिस्सा थे।
स्टानिकजई के सहपाठी रह चुके मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) ने मीडिया को बताया कि जब वह देहरादून में था तब उसके विचार बिल्कुल कट्टरपंथी नहीं थे। वह बहुत मिलनसार व्यक्ति था। वह एक आम अफगान कैडेट था जो यहां अपने समय का आनंद ले रहा था। चतुर्वेदी परम विशिष्ट सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और सेना पदक प्राप्त कर चुके हैं।
कर्नल (सेवानिवृत्त) केसर सिंह शेखावत (Col (Retd) Kesar Singh Shekhawat) , भी स्टानिकजई के सहपाठी रह चुके हैं। कर्नल शेखावत ने अंग्रेजी अखबार को बताया है ऋषिकेश में जब हम गंगा नदी में नहाने गए तो तैराकी की चड्डी वाली तस्वीर में हम साथ हैं।
लोगार प्रांत के बाराकी बराक जिले (Baraki Barak District of Logar Province) में 1963 में जन्मा स्टानिकजई मूल रूप से पश्तून (Stanikzai originally Pashtun) है। तालिबान (Taliban) में सबसे पढ़ा-लिखा नेता है। राजनीति विज्ञान में मास्टर्स करने के बाद उसने डेढ़ साल के लिए आईएमए में अपना प्री-कमीशन प्रशिक्षण पूरा किया था। यह सोवियत संघ (Soviet Union) के अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्ज़ा करने के ठीक बाद हुआ था।
उस समय तक भारतीय सैन्य संस्थान ने अफगानों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वह लेफ्टिनेंट के रूप में अफगान नेशनल आर्मी में शामिल हुआ था। उसने सोवियत-अफगान युद्ध और अफगानिस्तान की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ी। 1996 में, उसने सेना छोड़ दी और तालिबान में शामिल हो गया।
क्या भारत के लिए तुरूप का पत्ता हो सकता है साबित स्टानिकजई
उसके पूर्व सहपाठियों को लगता है कि भारत में उसके प्रशिक्षण की पृष्ठभूमि विदेश मंत्रालय के लिए एक तुरूप का पत्ता हो सकता है। सरकार चाहे तो स्टानिकजई के सहयोग से तालिबान के साथ बातचीत करने का एक रास्ता खोला जा सकता है। हालांकि भारत ने अभी तालिबान शासन को मान्यता देने के मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।