हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है इस दिन कार्तिकेय की पूजा अर्चना की जाती है आइए जानते हैं पूजा के महत्व के बारे में.
हिंदू पंचांग के अनुसार, स्कंद षष्ठी का व्रत 15 जुलाई को रखा जाएगा. षष्ठी तिथि 15 जुलाई को गुरुवार के दिन सुबह 07 बजकर 16 मिनट पर प्रारंभ होगी और 16 जुलाई को शुक्रवार की शाम को 06 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होगी. व्रत का पारण अगले दिन होगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के बड़े बेटे कार्तिकेय की पूजा होती है। ये व्रत मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। आषाढ़ मास की स्कंद षष्ठी का व्रत 15 जुलाई 2021 को गुरुवार के दिन रखा जाएगा।
दक्षिण भारत के लोग भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से उनकी पूजा- अर्चना करते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।
आइए जानते हैं कब है पूजा का शुभ मुहूर्त और इस दिन का महत्व के बारे में।
स्कंद षष्ठी पूजा विधि
मान्यता है कि व्रत करने वाले व्यक्ति को झूठ नहीं बोलना चाहिए. इस खास दिन पर सबसे पहले भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना होती है. इसके बाद भगवान कार्तिकेय को धूप, दीप, फल आदि का भोग लगाया जाता है स्कंद षष्ठी के दिन भक्त सुबह -सुबह उठकर स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहन कर कार्तिकेय की पूजा अर्चना करते हैं। इस दिन व्रत रखने वाले श्रद्धालु मुरुगन का पाठ, कांता षष्ठी कवसम और सुब्रमणियम भुजंगम का पाठ करते हैं। व्रत के दौरान लोग कुछ भी खाते- पीते नहीं है। व्रत करने वाला व्यक्ति दिन में एक समय फलाहार करता है. दक्षिण भारत में ये पर्व छह दिनों तक चलता है। कई लोग इस पर्व पर छह दिन तक नारियल पानी पीकर उपवास करते हैं।
स्कंद षष्ठी का महत्व
धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय ने तराकासुर का अंत किया था. मान्यता है कि इस दिन विधि- विधान से भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस खास दिन पर भगवान कार्तिकेय के मंदिर में श्रद्धालु इक्ट्ठा होते हैं। हालांकि कोरोना की वजह से आप सभी लोग अपने घरों में रहकर पूजा अर्चना करें।
यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है