सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल ब्रॉन्ड (Electoral Brand) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने चुनाव आयोग (ECI) से सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक मिले गुमनाम फंडिंग (Anonymous Funding) का डेटा तलब किया है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल ब्रॉन्ड (Electoral Brand) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) ने चुनाव आयोग (ECI) से सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक मिले गुमनाम फंडिंग (Anonymous Funding) का डेटा तलब किया है। इसके लिए ईसीआई (ECI) को दो हफ्ते का समय दिया गया है। ईसीआई (ECI) को डेटा एक सीलबंद लिफाफे में देना होगा। हालांकि अगली सुनवाई की तारीख का खुलासा नहीं किया गया है।
इलेक्टोरल ब्रॉन्ड (Electoral Bond) की वैधता को चुनौती देने के लिए चार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जय ठाकुर और सीपीएम पार्टी शामिल है। जिस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) , जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने की है। केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी (Attorney General R Venkataramani) और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने दलीलें रखीं। वहीं, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा।
तीसरे दिन की सुनवाई में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) ने केंद्र सरकार से गुरुवार को इलेक्टोरल ब्रॉन्ड (Electoral Brand) की जरूरत के संबंध में सवाल पूछा। चंदा कौन दे रहा है? यह सरकार को पता होता है। ब्रॉन्ड मिलते ही सरकार को पता चल जाता है कि किसने कितना चंदा दिया? इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) ने कहा कि सरकार यह बिल्कुल नहीं जानना चाहती कि किसने चंदा दिया? क्योंकि चंदा देने वाला अपनी पहचान छिपाना चाहता है। वह नहीं चाहता कि दूसरी पार्टी को पता चले।
भाजपा शासन में आया इलेक्टोरल ब्रॉन्ड
इलेक्टोरल ब्रॉन्ड (Electoral Brand) भाजपा शासन में नोटिफाई हुआ। केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को इस स्कीम को नोटिफाई किया था। इसके तहत इलेक्टोरल ब्रॉड (Electoral Brand) को कोई अकेले या मिलकर खरीद सकता है। इस स्कीम को 2017 में चैलेंज किया गया था, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई।
पी चिदंबरम ने भाजपा पर लगाए थे गंभीर आरोप
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम (Congress leader P Chidambaram) ने 30 अक्टूबर को भाजपा (BJP) पर आरोप लगाया था कि भाजपा बड़े कॉर्पोरेट्स से गुप्त और षडयंत्रकारी तरीके से फंड जुटाना चाहती है। हम पारदर्शी और लोकतांत्रिक तरीके से फंडिंग में विश्वास रखते हैं। वहीं, अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने 29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court) में बताया कि लोगों को पार्टियों को मिलने वाले फंड्स का सोर्स जानने का अधिकार नहीं है। क्योंकि ये स्कीम किसी प्रकार के कानून या अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती है।