उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से विधानसभा के चुनाव शुरु हो रहे हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश में सात चरणों में चुनाव होने हैं। बलिया जिले के सात विधानसभा की सीटों पर छठे चरण में यानी 3 मार्च को मतदान होना सुनिश्चित हुआ है। पूर्वाचंल के सबसे अंतिम जिले बलिया में कुल सात विधानसभा क्षेत्र है। बलिया सदर, बॉसडीह, बैरिया, रसड़ा, फेफना, सिकंदरपुर और बेल्थरा रोड।
UP Election 2022 Exclusive: उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी से विधानसभा के चुनाव शुरु हो रहे हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होने हैं। बलिया जिले के सात विधानसभा की सीटों पर छठे चरण में यानी 3 मार्च को मतदान होना सुनिश्चित हुआ है। पूर्वांचल के सबसे अंतिम जिले बलिया में कुल सात विधानसभा क्षेत्र है। बलिया सदर, बॉसडीह, बैरिया, रसड़ा, फेफना, सिकंदरपुर और बेल्थरा रोड।
2017 में हुए आम चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बलिया में बड़ी जीत हांथ लगी थी। इन विधानसभा की सीटों में से पांच सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। जबकि एक सीट सपा और एक सीट बसपा के हिस्से में है। साल 2022 के चुनाव में इस जिले में सत्ताधारी पार्टी किस स्थिती में रहेगी ये एक बड़ा सवाल है। बलिया सदर, बैरिया, बेल्थरा रोड, फेफना और सिकंदरपुर ये वो विधानसभा क्षेत्र हैं जहां से पिछले चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी जीत दर्ज कर विधानभवन पहुंचे। इन क्षेत्रों से क्रमश: भाजपा के आनंद स्वरुप शुक्ला, सुरेंद्र सिंह, धनंजय कनौजिया, उपेंद्र तिवारी और संजय यादव विधायक चुने गये हैं।
इनके अलावा बांसडीह की सीट से सपा के वरिष्ठ नेता और वर्तमान सरकार में नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी और रसड़ा से बसपा के विधानमंडल दल के वर्तमान नेता उमाशंकर सिंह विधायक हैं। हमारे संवाददाता जब बलिया जिले के विधानसभा क्षेत्रों के दौरे पर थे तो उन्होंने लोगों से बातचीत में एक विशेष बात गौर किया कि बलिया की कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां लोगो की नाराजगी वर्तमान में मौजूदा भाजपा के विधायकों से है ना कि पार्टी विशेष से। जो सीटें इस प्रकार की है उसमे हम सबसे पहले बात करेंगे बलिया के सदर विधानसभा सीट की….
बलिया सदर विधानसभा क्षेत्र: बलिया जिले के सदर विधानसभा की सीट से विधायक हैं वर्तमान भाजपा सरकार में राज्यमंत्री आनंद स्वरुप शुक्ला। आनंद स्वरुप शुक्ला वैसे तो हाल ही में दिल्ली में हुए उत्तरप्रदेश के भाजपा के ब्राह्मण नेताओं की मीटिंग में शामिल हुए थे। लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा इस चुनाव में इनका टिकट काट सकती है। कारण है बलिया के स्थानीय लोगो में व्यक्तिगत आनंद स्वरुप शुक्ला को लेकर के नाराजगी। लोगो का कहना है कि इन्होंने अपने कार्यकाल में कुछ नहीं किया। जब कोरोना के दूसरे लहर में जिला स्वास्थ सुविधाओं की कमी के कारण त्रस्त था उस समय विधायक जी बीमारी की बात कहकर क्षेत्र से नदारद रहे। जिले के शहरी क्षेत्रों के कई वीआईपी कालोनियों में बरसात के कारण पानी भरने की समस्या से पूरे पांच वर्ष के कार्यकाल में निजात नहीं दिला पाए।
फेफना विधानसभा क्षेत्र: इस विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं वर्तमान सरकार में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार उपेंद्र तिवारी। इन पर भी क्षेत्र के लिए कोई भी विकास का कार्य ना करने का आरोप है। उपेंद्र हिन्दू धर्म के भूमिहार जाति से आते हैं। वैसे तो इनके टिकट कटने की कोई विशेष चर्चा नहीं है। लेकिन पिछले चुनावों में दो यादव जाति के प्रत्याशियों का एक साथ चुनाव लड़ना इनको फायदा पहुंचा जाता था। लेकिन इस बार के चुनाव में पिछली बार बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अंबिका चौधरी के सपा में लौट कर आ जाने से यहां का मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
बैरिया विधानसभा: इस विधानसभा सीट से विधायक हैं अपने विवादित बयानों के कारण अक्सर चर्चा में रहने वाले विधायक सुरेंद्र सिंह। सुरेंद्र सिंह राजपूत जाति के लोकप्रिय नेता बन चुके हैं। सुरेंद्र सिंह के टिकट कटने की संभावना काफी कम नजर आ रही है। बैरिया के विधानसभा क्षेत्र में सुरेंद्र सिंह के लोकप्रियता का मामला फिफ्टी फिफ्टी का है। हालांकि सुरेंद्र सिंह का टिकट अगर भाजपा काटती है तो उससे राजपूत जाति में नाराजगी का सामना करना पड़ जायेगा। सुरेंद्र बलिया जिले के चर्चित दुर्जनपूर कांड से तब और चर्चा में आ गये थे जब उन्होंने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लेकर एक बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि जब अखिलेश खुलकर यादवों का समर्थन कर सकते हैं तो मैं भी राजपूतों के लिए कुछ भी कर सकता हूं।
सिकंदरपुर और बेल्थरा विधानसभा: इन विधानसभाओं के विधायक हैं क्रमश: संजय यादव और धनंजय कनौजिया। इन दोनों नेताओं पर इनके क्षेत्र की जनता ने कोई भी विकास का कार्य ना करने का आरोप लगाया है। क्षेत्र के लोगो का कहना है कि अगर इन दोनों नेताओं को किसी भी किमत पर हम वोट नहीं करेंगे। पूरे कार्यकाल के दौरान ये नेता पूर्ण रुप से निष्क्रिय रहे हैं। ऐसे में दोबारा सरकार में आने के लिए बेताब दिख रही भारतीय जनता पार्टी के पास इन दोनों नेताओं के टिकट काटने के अलावा और कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा है। इन सबके बीच लोगो का ये भी कहना है कि हमारी नाराजगी सरकार से नहीं स्थानीय नेताओं से है। तो सोचने और ध्यान देने वाली बात ये है कि क्या टिकट काट कर इन नेताओं का भाजपा फिर से एक बार इन विधानसभा की सीटों पर चुनौती पेश करेगी।