सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर बैंककर्मी निरंतर विरोध कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा बैंक ऑफ इंडिया का निजीकरण होने जा रहा है।
नई दिल्ली: सरकारी बैंकों के निजीकरण को लेकर बैंककर्मी निरंतर विरोध कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया तथा बैंक ऑफ इंडिया का निजीकरण होने जा रहा है। 1 फरवरी को पेश हुए बजट में बैंकों के निजीकरण कि घोषणा कि गई थी। फिलहाल वित्त वर्ष 2021-22 में दो सरकारी बैंकों के निजीकरण कि योजना है।
खबरों की माने तो निजीकरण की सूचि में इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक के नाम की चर्चा है। हालांकि, अभी तक इसको लेकर कोई भी निर्णय नहीं हुआ है। आपको बता दें, 4 बैंकों में से 2 का निजीकरण वित्त वर्ष 2021-22 में होना है। बैंकिंग श्रेणी में सरकार निजीकरण के प्रथम चरण के तहत मिड साइज तथा छोटे बैंकों में भागेदारी बेचने पर विचार कर रही है।
बताया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में सरकार देश के बड़े बैंकों पर भी दांव लगा सकती है। वीएम पोर्टफोलियो के रिसर्च हेड विवेक मित्तल ने बताया कि सरकार देश में केवल 5 बैंक रखना चाहती है। अन्य बैंकों का या तो मर्जर होगा अथवा फिर उन्हें निजी कर दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि सरकार उन्हीं बैंकों का आपस में मर्जर कराएगी जिनका एक्सपोजर पूरे भारत में होगा।
बैंकों के निजीकरण का विरोध कर रहे बैंककर्मियों ने बीते दिनों दो दिन का हड़ताल किया था। बैंककर्मियों पर संभावित प्रभाव के मध्य ग्राहकों के बीच भी संशय कि स्थिति है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी बैंकों को निजी करने से ग्राहकों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होगा। बैंक की सर्विसेज पहले की भांति जारी रहती है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बृहस्पतिवार को कहा कि हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को लेकर सरकार के साथ चर्चा कर रहे हैं तथा प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।