भारत धर्मों का देश है, यहां बेशक अब धर्म के नाम पर लोग झगड़ने लगे हैं, लेकिन हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि जितना हिन्दू मुस्लिम प्यार यहाँ मिलता है, वो दुनिया के अन्य देशों में दो धर्मों को लेकर नहीं मिल सकता है। आज ना जाने, कितने मुस्लिम फकीरों की पूजा हिन्दू कर रहे हैं और कई हिन्दू पूजा स्थलों को मुस्लिम लोग चला रहे हैं।
नई दिल्ली: भारत धर्मों का देश है, यहां बेशक अब धर्म के नाम पर लोग झगड़ने लगे हैं, लेकिन हमारा इतिहास इस बात का गवाह है कि जितना हिन्दू मुस्लिम प्यार यहाँ मिलता है, वो दुनिया के अन्य देशों में दो धर्मों को लेकर नहीं मिल सकता है। आज ना जाने, कितने मुस्लिम फकीरों की पूजा हिन्दू कर रहे हैं और कई हिन्दू पूजा स्थलों को मुस्लिम लोग चला रहे हैं।
भारत में ऐसे ही प्रमुख दो हनुमान मंदिर हैं, जिनका निर्माण मुस्लिम लोगों ने कराया है और इनके निर्माण के पीछे हनुमान जी के प्रति इनकी भक्ति मुख्य कारण रही है।
भगवान राम की नगरी अयोध्या में स्थित है, हनुमान गढ़ी मंदिर। मंदिर सरयू नदी के किनारे पर बना हुआ है। यहां जाने के लिए आपको 76 सीढियां चढ़नी होती हैं। वैसे कहते हैं कि भगवान राम के दर्शन करने से पहले आपको हनुमान जी से आज्ञा लेनी पड़ती है। आज भारत में हनुमान गढ़ी मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
इस मंदिर के पीछे छुपी कहानी काफी रोचक है। करीब 300 साल पहले यहां के सुल्तान मंसूर अली थे। एक रात इनके इकलौते बेटे की तबियत काफी खराब हो गयी। रात में बेटे की सांसें जब खत्म होने लगीं, तब सुल्तान मंसूर अली जी आये हनुमान जी के चरणों में।
पहले तो सुल्तान को अच्छा नहीं लगा, लेकिन जब इन्होनें हनुमान जी को दिल से पुकारा तो बेटे की उखड़ी सांसें वापस आ गयीं। तब इनकी आस्था बजरंग बलि जी के लिए इतनी ज्यादा हो गयी कि इन्होनें यहां 52 बीघा जमीन मंदिर और इमली वन के नाम कर दी।
संत अभयारामदास के सहयोग और निर्देशन में यह विशाल निर्माण पूरा हुआ। संत अभयारामदास निर्वाणी अखाड़ा के शिष्य थे और यहां इन्होंने अपने सम्प्रदाय का अखाड़ा भी स्थापित किया था। बाद में वैसे इस प्यार को खत्म करने का काम, देश के बाहर से आये शासकों ने कई बार किया। इन्होनें कई बार टीले पर बने मंदिर को तोड़ने की कोशिश की, पर आज हनुमान टीले पर मंदिर खड़ा हुआ है और हिन्दू-मुस्लिम एकता का गवाह बना हुआ है।
लगभग 200 साल पहले पूर्व अवध के नवाब थे मुहम्मद अली शाह। इनकी बेगम रबिया थीं। दोनों ही औलाद सुख से महरूम थे। काफी दुआ की गयीं, जगह-जगह माथा टेका गया। दोनों जो कर सकते थे वो दोनों ने किया। पर इनके यहां नन्हा फरिस्ता नही आया।
एक दिन बेगम को कोई, यहां रहने वाले एक संत के बारे में बताता है कि आप एक बार उन हिन्दू संत बाड़ी वाले बाबा के पास जाओ। बेगम संत के पास जाती हैं, और बाबा इनकी फरियाद पहुँचा देते हैं, हनुमान जी तक।
रात को बेगम को सपने में हनुमान जी के दर्शन होते हैं, जो इनको इस्लामबाडी टीले के नीचे दबी अपनी मूर्ति को निकालने और फिर मंदिर निर्माण की आज्ञा देते हैं। बेगम सुबह संत के साथ वहां जाती हैं और मूर्ति इनको खुदाई में मिलती है। वही मूर्ति अलीगंज के मन्दिर में स्थापित है। बेगम ने ही बनवाया यहां पहला मन्दिर बनवाया। इसके बाद बेगम को बेटे की प्राप्ति होती है।
मंदिर में ज्येष्ठ मास में बड़े मंगल को मेला लगता है। ऐसे ना जाने कितने किस्से, आज भी हमारे इतिहास में दफ़न हैं, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल हैं, पर ये बड़ा दुभाग्य ही है कि लिखने वाले, हमेशा तोड़ने वाले किस्सों को लिखते हैं, ना की जोड़ने वाले किस्सों को।