हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि होली से कुछ दिन पहले गृहिणी, विवाह, मुंडन संस्कार आदि सहित कई शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। होली से पहले की इस अवधि को अशुभ माना जाता है और इसे होलाष्टक कहा जाता है।
रंगों का त्योहार होली आने ही वाला है। इस साल होली 18 मार्च (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि होली से कुछ दिन पहले गृहिणी, विवाह, मुंडन संस्कार आदि सहित कई शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। होली के त्योहार से पहले की यह 8 दिन की अवधि अशुभ मानी जाती है और इसे होलाष्टक कहा जाता है। होलाष्टक फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है और पूर्णिमा यानी होलिका दहन तक चलता है। इस वर्ष होलाष्टक का चरण 10 मार्च से शुरू होकर 17 मार्च तक चलेगा।
होलाष्टक क्या है?
होलाष्टक के दौरान सभी ग्रहों की प्रकृति उग्र होती है। अष्टमी को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र होते हैं। इसी कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है। इस समयावधि में व्यापार, वाहन की बिक्री, गृह प्रवेश, नींव पूजा, विवाह आदि नहीं करना चाहिए।
होलाष्टक के पीछे पौराणिक कारण
ऐसी मान्यता है कि कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग कर दी थी। इससे भगवान शिव ने फाल्गुन की अष्टमी तिथि को अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर दिया। अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए, कामदेव की पत्नी रति ने शिव की पूजा की, जिससे भगवान ने प्रसन्न होकर रति की बात मान ली और उपाय बताया। जिसके बाद आम जनता में इसकी खुशी मनाई गई और होली का त्योहार मनाया गया।
होलाष्टक के पीछे वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक कारणों से फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से नकारात्मक ऊर्जा प्रकृति में प्रवेश करती है। इसलिए इस अवधि में अक्सर गृह प्रवेश या कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।