एक ऐसे नगरी जिसे केदारनाथ के नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां पर ऐसा कहा जाता है कि अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का। तो चलिए आप को रूबरू करातें है केदारनाथ नगरी से।
एक ऐसे नगरी जिसे केदारनाथ के नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां पर ऐसा कहा जाता है कि अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का। तो चलिए आप को रूबरू करातें है केदारनाथ नगरी से।
केदारनाथ मंदिर को लेकर कई सारी कहानियां हैं। लोगो का कहना है कि केदारनाथ मैं बाबा का शिवलिंग शर्मा स्थापित हुआ था और यहां के लिए भी कहा जाता है अगर कोई भक्त सच्चे मन से बाबा का दर्शन करता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है |
12 ज्योतिर्लिंगों में से एक केदारनाथ का शिवलिंग स्वयंभू (अपने आप प्रकट हुआ) माना जाता है।
बताया जाता है कि केदारनाथ में आरती काफी शानदार होती है
मंदिर का निर्माण इतिहास : पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन बाद मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर बंद होने के बाद 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है।