नई दिल्ली: कहते है कि जीवन और मृत्यु इस संसार का वो सच है जिसे कोई नहीं टाल सकता. जी हां जो व्यक्ति इस दुनिया में आता है उसे एक न एक दिन इस दुनिया से जाना ही पड़ता है. हालांकि ये बात अलग है कि कुछ लोग मृत्यु के बाद नर्क में जाते है, तो वही कुछ लोग स्वर्ग में जाते है. अब जाहिर सी बात है कि जिन लोगो ने अच्छे कर्म किए होते है और जो लोग जीवन में धर्म के मार्ग पर चलते है, उन्हें तो स्वर्ग का ही मुँह देखना पड़ता है. मगर जो लोग जीवन भर बुरे कर्मो में उलझे रहते है, उन्हें नर्क का दुःख भोगना ही पड़ता है. वो कहते है न कि इंसान को उसके कर्मो की सजा जरूर मिलती है.
हालांकि आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में बात करने जा रहे है, जिसने अपने जीवन में तो बुरे कर्म ही किए है लेकिन फिर भी मरने के बाद उसे स्वर्ग में जाने का मौका मिला. जी हां आपकी जानकारी के लिए बता दे कि हम यहाँ किसी और की नहीं बल्कि दुर्योधन की बात कर रहे है. वैसे आप सब ने दुर्योधन का नाम तो सुना ही होगा. बता दे कि दुर्योधन वही है, जिसने महाभारत में द्रौपदी का चिर हरण करवाया था. मगर इतना बुरा काम करने के बावजूद भी उसे मरने के बाद स्वर्ग में जगह मिली. तो चलिए आज हम आपको बताते है कि आखिर दुर्योधन को स्वर्ग में जगह क्यों मिली.
गौरतलब है कि महाभारत के युद्ध में कौरवो के मारे जाने के बाद जब इस युद्ध का अंत हुआ, तब पांडव कुछ समय तक राज्य करने के बाद हिमालय चले गए थे. बता दे कि वहां एक एक करके सभी भाई गिर गए. मगर इस दौरान अकेले युधिषिठर ही अपने कुत्ते के साथ बचे रहे. बता दे कि वह सीधा स्वर्ग चले गए. जी हां ऐसा माना जाता है कि युधिषिठर मरने से पहले ही स्वर्ग चले गए थे. ऐसे में उन्होंने स्वर्ग और नर्क दोनों जगहों का दर्शन किया. बता दे कि उन्हें स्वर्ग में प्रवेश करते ही दुर्योधन दिखाई दिया और इसके साथ ही उन्होंने अपने भाइयो को भी यहाँ देखा.
गौरतलब है कि स्वर्ग में भीम भी मौजूद थे और उनके मन में हमेशा की तरह एक सवाल उठा. बरहलाल भीम ने पूछा कि उनके भाई दुर्योधन ने जीवन भर पाप किए है, लेकिन फिर भी उन्हें स्वर्ग क्यों नसीब हुआ. ऐसे में उन्होंने पूछा कि क्या ईश्वर के न्याय में भी कोई गलती हुई है. बता दे कि युधिषिठर ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि जीवन भर दुर्योधन का ध्येय एकदम साफ था.
इसके इलावा अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने हर मुमकिन काम किया. वास्तव में दुर्योधन को बचपन से ही अच्छे संस्कार नहीं मिले थे. जिसके कारण वह सच का साथ नहीं दे पाया. हालांकि इतनी मुश्किलें आने के बावजूद भी दुर्योधन ने कभी अपना उद्देश्य अधूरा नहीं छोड़ा और यही उसकी सच्चाई का सबूत है. यही वजह है कि जीवन में इतने बुरे कर्म करने के बाद भी उसे स्वर्ग ही नसीब हुआ नर्क नहीं. बरहलाल युधिषिठर की बात सुन कर भीम की जिज्ञासा शांत हो गई और इसके बाद पांडवो और कौरवो ने मिल कर एक बार फिर से काफी समय एक साथ बिताया.