चुनाव के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने वाला खर्च राज्य सरकारों को सत्ता में बनाए रखने में महत्वपूर्ण होता है। शुक्रवार को एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट जारी कर ये बाते कहीं है। दरअसल, एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने ये रिपोर्ट पिछले 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर किया है।
नई दिल्ली। चुनाव के दौरान प्रचार और विज्ञापन पर किए जाने वाला खर्च राज्य सरकारों को सत्ता में बनाए रखने में महत्वपूर्ण होता है। शुक्रवार को एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने एक रिपोर्ट जारी कर ये बाते कहीं है। दरअसल, एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने ये रिपोर्ट पिछले 23 राज्यों के चुनावों के विश्लेषण के आधार पर किया है।
इसमें ये बताया गया है कि जिन राज्यों में चुनाव के दौरान कम प्रचार किया गया वो ज्यादातर चुनाव हार गईं। इसमें कहा गया है कि इन चुनावों में मतदान करने के लिए निकलने वाले मतदाताओं की संख्या, महिला मतदाता, जाति-आधारित मतदान, वर्तमान नेतृत्व, सत्ता-विरोधी लहर आदि जैसे अन्य कारक थे, लेकिन दस राज्यों में एक आम बात यह निकलती है कि जहां एक पुरानी पार्टी सत्ता बनाए रखने में सक्षम हुई, उसकी वजह चुनावी विज्ञापनों या विज्ञापन पर सार्वजनिक व्यय का बढ़ना था।
हाल में ही पश्चिम बंगाल और करेल में विधानसभा चुनाव सम्पन हुआ है। केरल और पश्चिम बंगाल ने चुनावी वर्ष में सूचना और प्रचार पर पूंजीगत व्यय में क्रमशः 47 प्रतिशत और 8 प्रतिशत की वृद्धि दिखाई, जिसके कारण पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी सत्ता में बनी रहीं। रिपोर्ट में इस बात उल्लेख किया गया है। वहीं, तमिलनाडु में राज्य सरकार द्वारा चुनावी वर्ष के विज्ञापन में मामूली दो प्रतिशत की वृद्धि के बाद सरकार में बदलाव देखा गया।