कोरोना से बचने के लिए प्रयोग किया जा रहा है सस्ता हैंड सैनिटाइजर आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है। दरअसल, कोरोना संकट के बीच बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामलों में भी इन सैनिटाइजर की भूमिका नजर आ रही है। एक रिसर्च में सामने आया है कि ब्लैक फंगस के लिए स्टेरॉयड के अलावा धूल के कण औऱ बाजार में मिलने वाले नकली सेनेटाइजर भी जिम्मेदार है। दरअसल, सस्ते सैनिटाइजर में मेथेनॉल की मात्रा जरूरत से भी कम होती है।
नई दिल्ली। कोरोना से बचने के लिए प्रयोग किया जा रहा है सस्ता हैंड सैनिटाइजर आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है। दरअसल, कोरोना संकट के बीच बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामलों में भी इन सैनिटाइजर की भूमिका नजर आ रही है। एक रिसर्च में सामने आया है कि ब्लैक फंगस के लिए स्टेरॉयड के अलावा धूल के कण औऱ बाजार में मिलने वाले नकली सेनेटाइजर भी जिम्मेदार है। दरअसल, सस्ते सैनिटाइजर में मेथेनॉल की मात्रा जरूरत से भी कम होती है।
जो आंख और नाक की कोशिकाओं को मृत कर फंगस को उगाने में बेहतर वातावरण तैयार कर रही है। एक हिंदी अखबार से बातचीत के दौरान आईआईटी- बीएचयू में सिरामिक इंजीनियर विभाग के वैज्ञानिक डॉ. प्रीतम सिंह ने कहा कि, जब हम इन स्प्रे सैनिटाइजर को अपने चेहरे के आसपास ले जाकर छिड़काव करते हैं तो थोड़ी मात्रा इनकी हमारे आंखों और नांक में भी चली जाती है।
इससे वहां के रेटिना समेत आखाें व नांक की कोशिकाएं मृत हो जाती हैं। इन सेनेटाइजर में 5 फ़ीसदी के आसपास मिथेनॉल है जो फंगस के उगने का बेहतर वातावरण तैयार करता है। इससे आंखों के रेटिना ख़राब होने के साथ ही रोशनी धीरे धीरे कम होती है और व्यक्ति अंधा होता जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि दरअसल, यहां प्रोटीलिसिस प्रक्रिया होती है यानि कि प्रोटीन का लिक्विड निकलने लगता है और सूखे हुए अर्थात मृत प्रोटीन आपस में तेजी से जुड़ने लगते हैं। इसके बाद फंगस बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। वहीं हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई है तो ब्लैक फंगस अपना प्रभाव दिखने लगते हैं। जैसे ही हमारी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई है तो ब्लैक फंगस अपना प्रभाव दिखने लगते हैं।