बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देश के नागरिक संगठनों के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC) के देशभर में 250 से भी ज्यादा सहयोगी संगठनों व कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से देश में पिछले एक साल में छापे की 38,388 कार्रवाइयों में 53,651 बाल मजदूर मुक्त कराए गए। इनमें 90 प्रतिशत बच्चे उन क्षेत्रों में काम कर रहे थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन व भारत सरकार बाल मजदूरी का सबसे बदतरीन स्वरूप मानती है।
लखनऊ। बच्चों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देश के नागरिक संगठनों के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC) के देशभर में 250 से भी ज्यादा सहयोगी संगठनों व कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद से देश में पिछले एक साल में छापे की 38,388 कार्रवाइयों में 53,651 बाल मजदूर मुक्त कराए गए। इनमें 90 प्रतिशत बच्चे उन क्षेत्रों में काम कर रहे थे जिन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन व भारत सरकार बाल मजदूरी का सबसे बदतरीन स्वरूप मानती है। इनमें स्पा, मसाज पार्लर और आर्केस्ट्रा जैसे तमाम उद्योग शामिल हैं, जहां बच्चों का बाल वेश्यावृत्ति (Child prostitution) , चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography) या जबरिया अन्य यौन उद्देश्यों से इस्तेमाल किया जाता है।
ये तथ्य जेआरसी के सहयोगी संगठन इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (India Child Protection) के शोध प्रभाग सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहैवियर चेंज (C-Lab) की बाल श्रम के संबंध में एक रिपोर्ट ‘बिल्डिंग द केस फॉर जीरो : हाउ प्रासीक्यूशन एक्ट्स ऐज टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड लेबर’ (‘Building the Case for Zero: How Prosecution Acts as a Tipping Point to End Child Labour’) में उजागर हुए। इन छापों के बाद 38,388 मामले दर्ज किए गए और 5,809 गिरफ्तारियां हुईं। इनमें 85 प्रतिशत गिरफ्तारियां बाल मजदूरी के मामलों में हुईं। स्थिति की गंभीरता के मद्देनजर रिपोर्ट में बाल श्रम के खात्मे के लिए एक राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन मिशन शुरू करने, इसके लिए पर्याप्त संसाधनों का आवंटन और जिलों में जिला स्तरीय चाइल्ड लेबर टास्क फोर्स के गठन की सलाह दी गई है।
यह रिपोर्ट 1 अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 के बीच देश के 24 राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों के 418 जिलों में काम कर रहे जेआरसी के 250 से भी ज्यादा सहयोगी संगठनों के बाल श्रम और ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों को मुक्त कराने के लिए की गई छापामार कार्रवाई के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में बाल श्रम के खात्मे के लिए खास तौर से कानूनी कार्रवाइयों, शिक्षा व पुनर्वास पर जोर देते हुए कई सिफारिशें भी की गईं हैं। रिपोर्ट के अनुसार जब तक दोषियों पर सख्त व त्वरित कानूनी कार्रवाई नहीं होगी, तब तक बाल श्रम पर रोक मुश्किल है। साथ ही, अगर मुक्त कराए गए बच्चों की शिक्षा व पुनर्वास के इंतजाम नहीं किए गए तो वे फिर बाल मजदूरी के दुष्चक्र में फंस जाएंगे।
लिहाजा बाल मजदूर पुनर्वास कोष (Child Labour Rehabilitation Fund) समय की जरूरत है। साथ ही, 18 साल तक मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा से भी बाल श्रम की रोकथाम में मदद मिलेगी क्योंकि पढ़ाई छोड़ चुके बच्चों के बाल मजदूरी के दलदल में फंसने की संभावना अधिक रहती है। रिपोर्ट में समग्र नीतिगत बदलावों, सरकारी खरीदों में बाल श्रम का इस्तेमाल कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति, खतरनाक उद्योगों की सूची के विस्तार, राज्यों को उनकी विशेष जरूरतों के हिसाब से नीतियां बनाने, बाल मजदूरी के खात्मे के लिए सतत विकास लक्ष्य 8.7 की समयसीमा को 2030 तक बढ़ाने, दोषियों के खिलाफ सख्त व त्वरित कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की गई है।
इस दौरान सबसे ज्यादा तेलंगाना में 7,632 छापे मारे गए जबकि इसके बाद उत्तर प्रदेश (2,469), राजस्थान (2,453) और मध्यप्रदेश (2,335) रहे। यह दर्शाता है कि देशभर में चलाए गए बाल मजदूरी विरोधी अभियान प्रभावी रहे हैं, लेकिन स्थायी बदलाव तभी आएगा जब कानून का डर और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। रिपोर्ट बताती है कि छापेमारी के साथ बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने में भी तेलंगाना अव्वल रहा वर्ष 2024-25 में बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने में तेलंगाना देश में अव्वल रहा जहां 11,063 बच्चे छुड़ाए गए जबकि इसके बाद बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली का स्थान है। बिहार में 3,974, राजस्थान में 3,847, उत्तर प्रदेश में 3,804 और दिल्ली में 2,588 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया गया।
जेआरसी के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत (JRC National Convenor Ravi Kant) ने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का बाल श्रम के सबसे वीभत्स स्वरूपों में इस्तेमाल यह बताता है कि सरकार व नागरिक समाज के तमाम प्रयासों के बावजूद बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने का हमारा राष्ट्रीय संकल्प अभी अधूरा है। भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन 182 यानी बाल श्रम के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय संधि का हस्ताक्षरकर्ता देश है जिसमें बाल श्रम के सभी खतरनाक स्वरूपों को खत्म करने की प्रतिबद्धता जताई गई है।
भारत इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है जिसके सुखद परिणाम भी सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट से यह तथ्य स्थापित हुआ है कि कानूनी कार्रवाइयों से लोगों के मन में कानून का भय पैदा होता है जो बाल मजदूरी के खिलाफ प्रतिरोधक का काम करता है। बाल मजदूरी के बदतरीन स्वरूपों के शिकार बच्चों के साथ न्याय तभी होगा जब दोषियों को सजा मिले और पीड़ितों के लिए सुरक्षा व पुनर्वास के पुख्ता इंतजाम हों। सरकार को अभियोजन तंत्र को मजबूत करते हुए एक बाल मजदूर पुनर्वास फंड स्थापित करने व इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक समग्र पुनर्वास नीति पर काम करना चाहिए।