Justice Yashwant Verma: पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर अधजले नोटों का ढेर मिला था। जिसके बाद से जस्टिस वर्मा को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। पिपक्ष के नेता भी इस मामले में लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तीन जजों की एक कमेटी बनाई गई है, जो मामले की जांच कर रही है। इस बीच लोगों के मन में ये सवाल होगा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आम नागरिकों की तरह एफआईआर दर्ज हो सकती है या नहीं? इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला सुर्खियों में है।
Justice Yashwant Verma: पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर अधजले नोटों का ढेर मिला था। जिसके बाद से जस्टिस वर्मा को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। पिपक्ष के नेता भी इस मामले में लगातार प्रतिक्रिया दे रहे हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तीन जजों की एक कमेटी बनाई गई है, जो मामले की जांच कर रही है। इस बीच लोगों के मन में ये सवाल होगा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आम नागरिकों की तरह एफआईआर दर्ज हो सकती है या नहीं? इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला सुर्खियों में है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में एक अहम फैसला सुनाया था। जिसके अनुसार जज के खिलाफ भी मामला दर्ज हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि हाई कोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ भी आपराधिक मामलों में केस दर्ज हो सकता है, क्योंकि वे भी जनता के एक सेवक ही हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के दायरे में वे भी आते हैं। हालांकि, सीआरपीसी के सेक्शन 154 के तहत जज के खिलाफ केस दर्ज नहीं हो सकता, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मंजूरी न मिली हो। अगर चीफ जस्टिस की राय हो कि यह मामला ऐक्ट के तहत फिट नहीं है तो फिर केस दर्ज नहीं किया जा सकता।
बता दें कि सेक्शन 154 के तहत पुलिस बिना किसी वॉरंट के ही गिरफ्तार कर सकती है और फिर जांच बढ़ा सकती है। संज्ञेय अपराध के मामलों में ऐसा किया जाता है। हालांकि, जस्टिस के खिलाफ एफआईआर के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी है और राष्ट्रपति इस संबंध में कोई फैसला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस) से सलाह के बाद ही लेते हैं। साल 1991 का मामला हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस के. वीरास्वामी के खिलाफ सीबीआई में शिकायत दी गई थी। फिर करप्शन ऐक्ट के तहत रिटायरमेंट के डेढ़ महीने बाद जस्टिस के. वीरास्वामी के खिलाफ केस भी फाइल हुआ था। यह 1976 का वाकया है। फिर आय से अधिक संपत्ति के केस में 1977 में चार्जशीट भी दाखिल हुई थी।
बताया जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित समिति के सामने पेश होने से पहले जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने 5 वकीलों से कानूनी सलाह भी ली है। दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने जस्टिस वर्मा के घर के स्टोर रूम में बड़े पैमाने पर कैश मिलने के फोटो और वीडियो दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से शेयर किए थे। लेकिन उनके एफआईआर तभी दर्ज हो सकती है, जब सरकार पहले चीफ जस्टिस से सलाह कर ले। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब तक जो जानकारी साझा की है, उसमें यह नहीं बताया गया कि सरकार ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR को लेकर सलाह मांगी है या नहीं।