सत्यार्थी ने इस अवसर पर कहा, “यह किताब 17 साल से लेकर 70 साल की उम्र तक सपनों की खेती के अनुभवों और सीखों पर आधारित है। इसका मतलब यह हुआ कि यह हर उम्र के पाठकों के काम आ सकती है। यह उनके लिए तो है ही, जो सपने देख सकते हैं, उन लोगों के लिए भी हैं जिन्हें सपना देखने का मौक़ा तक नहीं मिला। उनके लिए भी, जो सपने पूरे हो जाने पर घमंड में चूर होकर ख़ुद का नुक़सान कर लेते है, और जो उनके टूट जाने पर निराशा के अंधेरे में डूब जाते हैं।
नई दिल्ली। प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में रविवार को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘सपनों की रोशनी’ का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात गीतकार एवं कवि आलोक श्रीवास्तव ने भी चर्चा में हिस्सा लिया। ‘सपनों की रोशनी’ नोबेल विजेता द्वारा 50 साल पहले 17 वर्ष की उम्र में लिखी गई डायरी पर आधारित है जिसे अब उन्होंने किताब की शक्ल में पिरोया है। इस किताब के नौ अध्यायों में सफलता के नौ सूत्र हैं।
सत्यार्थी ने इस अवसर पर कहा, “यह किताब 17 साल से लेकर 70 साल की उम्र तक सपनों की खेती के अनुभवों और सीखों पर आधारित है। इसका मतलब यह हुआ कि यह हर उम्र के पाठकों के काम आ सकती है। यह उनके लिए तो है ही, जो सपने देख सकते हैं, उन लोगों के लिए भी हैं जिन्हें सपना देखने का मौक़ा तक नहीं मिला। उनके लिए भी, जो सपने पूरे हो जाने पर घमंड में चूर होकर ख़ुद का नुक़सान कर लेते है, और जो उनके टूट जाने पर निराशा के अंधेरे में डूब जाते हैं। सभी को पीछे छोड़ तेज़ी से भाग कर सफलता की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचकर बिलकुल अकेले पड़ गए लोग भी शायद इसमें लिखी बातों का फ़ायदा उठा सकते हैं। और वे भी जो मैदान में उतरने से घबराते हैं।”
उन्होंने कहा, इस किताब में कोई उपदेश नहीं हैं। इसमें मेरी और मेरे आसपास के लोगों की ऐसी ढेरों कहानियां हैं, जिनमें आशा और निराशा, स्पष्टता और असमंजस, सफलता और असफलता, ख़ुशी और दुख, आसानी और मुश्किलें, चिंताएं और मस्ती जैसे सारे अनुभव शामिल हैं। आज की वास्तविकताओं तथा चुनौतियों के संदर्भ में लगभग आधी शताब्दी पहले के मेरे विचार कितने प्रासंगिक हैं, तब से अब तक क्या बुनियादी बदलाव आए या नहीं आए, इन की चर्चा निजी अनुभवों के आधार पर की गई है।
सत्यार्थी ने युवाओं से आह्वान करते हुए कहा, खूब सपने देखें, बड़े सपने देखें। आप सभी के भीतर एक विराट शक्ति है। उस पर विश्वास कर अपने सपनों को पूरा करने के रास्ते पर बढ़ें। इस किताब के लिखने का उद्देश्य ही है कि लोग सपने देखने का साहस कर सकें। सपने देखने वाला व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता। इसीलिए मैं 70 साल की उम्र में करुणा के वैश्वीकरण का सपना देख रहा हूं।
प्रख्यात गीतकार एवं कवि आलोक श्रीवास्तव ने किशोरावस्था में विदिशा में अस्पृश्यता के खिलाफ कैलाश सत्यार्थी के संघर्षों पर रोशनी डालते हुए बताया कि कैसे सफाईकर्मियों के हाथों बना खाना खाने के लिए लोगों को न्योता देने की वजह से वे अपने ही घर में अस्पृश्य हो गए। इस एक घटना ने कैलाश के कालांतर मे कैलाश सत्यार्थी बनने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि यह किताब सपनों को साकार करने का दस्तावेज है।
इस अवसर पर किताब के प्रकाशक प्रभात पब्लिकेशन के निदेशक प्रभात कुमार ने कहा, “कैलाश सत्यार्थी न तो मोटिवेशनल स्पीकर हैं और न व्यावसायिक लेखक। यह एक कर्मयोगी की अपने सपनों, संघर्षों और अनुभवों की कहानी है। इसमें उपदेश नहीं बल्कि अनुभवसिद्ध सत्य हैं। एक छोटे शहर और सामान्य परिवेश से निकलकर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति बनने तक के लेखक के अनुभवों पर आधारित यह पुस्तक पाठकों के लिए एक बेशकीमती उपहार साबित होगी।”