आज के दौर में प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। इनकी मनमानी फीस वसूली, किताबों और ड्रेस के नाम पर अविभावकों को आर्थिक रूप से निचोड़ना अब एक आम बात हो गई है। स्थिति इतनी भयावह हो गई है।
लखनऊ। आज के दौर में प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को व्यापार बना दिया गया है। इनकी मनमानी फीस वसूली, किताबों और ड्रेस के नाम पर अविभावकों को आर्थिक रूप से निचोड़ना अब एक आम बात हो गई है। स्थिति इतनी भयावह हो गई है।
यूपी की राजधानी लखनऊ में संचालित लखनऊ पब्लिक स्कूल एंड कॉलेजज ने एलकेजी-यूकेजी सहित अन्य कक्षाओं में बुधवार व शनिवार को पहने जाने वाली सफेद ड्रेस की जगह बदलाव करते हुए अब टी शर्ट लागू कर दिया है। इस टी शर्ट की बिक्री विशेष दुकान से की जा रही है। जिस पर दाम से करीब 30 प्रतिशत की ज्यादा वसूली की शिकायत अभिभावक कर रहे हैं।
अभिवकों का कहना है कि स्कूल यूनिफॉर्म, जूते, बैग तक विशेष दुकानों से खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। स्कूलों का यह फरमान मध्यम और निम्न आय वर्गीय परिवारों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ साबित हो रहा है। यह न केवल शिक्षा के मौलिक अधिकार की भावना के खिलाफ है, बल्कि सामाजिक असमानता को और बढ़ावा देता है। स्कूलों का उद्देश्य बच्चों को ज्ञान देना होना चाहिए, न कि मुनाफा कमाना। शिक्षा क्षेत्र में ऐसी मनमानी पर नकेल कसना अब बेहद जरूरी हो गया है।
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि इस दिशा में सख्त कदम उठाए और हर स्कूल को यह अनिवार्य किया जाए कि वे किताबों व ड्रेस की खरीद के लिए अभिभावकों को स्वतंत्रता दें। वरना शिक्षा का यह शोषणकारी बाज़ार आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा से विमुख कर देगा।