देश में आयुर्वेद और एलोपैथी पर बहस छिड़ी है। इसी के बीच औरैया के आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सक डॉ. कप्तान सिंह पाल ने गुरूवार को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्वीकार किया कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद चिकित्सा की पुरातन विद्या आयुर्वेद में शोध कार्यो को प्रोत्साहन मिला है। इस पद्धति के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है।
औरैया। देश में आयुर्वेद और एलोपैथी पर बहस छिड़ी है। इसी के बीच औरैया के आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सक डॉ. कप्तान सिंह पाल ने गुरूवार को बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्वीकार किया कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद चिकित्सा की पुरातन विद्या आयुर्वेद में शोध कार्यो को प्रोत्साहन मिला है। इस पद्धति के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ा है।
डॉ. सिंह ने कहा कि मानव कल्याण के लिए आयुर्वेद सबसे अच्छी पैथी है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ी है। आयुर्वेद को समाज में अधिक स्वीकार्य बनाने के लिए पिछले कुछ सालों में अधिक शोध हुए हैं। सरकार ने अलग से आयुष मंत्रालय का गठन कर दिया है। इसके बाद से इस क्षेत्र में बढ़ चढ़कर काम हो रहा है। बजट बढ़ने से आयुर्वेद अस्पताल औषधियों से समृद्ध हो गए हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 में आयुर्वेद से आराम मिलता है। यह वायरल था। इसकी दवा नहीं थी। लक्ष्य आधारित उपचार किया गया, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में आयुर्वेद सक्षम है। योगा से हम शारीरिक रूप से स्वस्थ होते ही हैं। मानसिक रूप से भी हम स्वस्थ होते हैं। उन्होंने कहा कि दिनचर्या, ऋतुचर्या अवस्था के अनुसार आहार-विहार करना चाहिए। भारत में हजारों साल पुरानी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में से आयुर्वेद भी है। इसकी दवाएं लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार के लिए जानी जाती हैं।
चिकित्सक ने कहा कि एलोपैथी और आयुर्वेद बहस का मुद्दा भी नहीं है। सभी पैथीयों का उद्देश्य केवल एक है, रोगी का कल्याण हो। आयुर्वेद और एलोपैथ दोनों अलग-अलग और उपयोगी चिकित्सा पद्धति हैं। सभी चिकित्सा का मूल उद्भव भगवान धन्वंतरि को मानते हैं। भगवान धन्वंतरि ने सबसे पहले आयुर्वेद चिकित्सा की ही रिसर्च की, बाद में अलग-अलग पैथी बन गईं, शस्य विज्ञान अब सर्जरी हो गई। आयुर्वेद पर जो पहले रिसर्च होता था वह बजट के अभाव में रुका रहा। औषधियां वन संपदा से मिल जाती थी। वह खत्म हो गई हैं अब औषधीय पौधे लगाने के लिए लोगों को प्रेरित करना पड़ रहा है।