परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पृथ्वी उपभोग की वस्तु नहीं। आज धरती के शोषण के नहीं, पोषण की जरूरत है। धरती बचेगी, तभी प्रकृति बचेगी और तभी संस्कृति भी बचेगी। स्वामी चिदानंद सरस्वती भारत-तिब्बत समन्वय संघ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे।
उत्तराखंड: परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि पृथ्वी उपभोग की वस्तु नहीं। आज धरती के शोषण के नहीं, पोषण की जरूरत है। धरती बचेगी, तभी प्रकृति बचेगी और तभी संस्कृति भी बचेगी। स्वामी चिदानंद सरस्वती भारत-तिब्बत समन्वय संघ द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार को संबोधित कर रहे थे। आयोजन में टेरियर्स फाउंडेशन का सहयोग रहा। पिछले दिनों कोरोना महामारी की चर्चा करते हुए स्वामी चिदानन्द जी ने कहा कि जब तक हम प्रकृति के समक्ष अपना सरेंडर नहीं करेंगे, तब तक आक्सीजन के सिलेंडर ही ढूंढते रहेंगे। आज इस कल्चर को बदलने का समय है, आज हम जिस जीवनशैली को अपना रहे हैं उसी के चलते नदियों का अस्तित्व खत्म है। हवा पानी मिट्टी सब कुछ प्रदूषित है।
इसे बदलने की आवश्यकता है ।उन्होंने कहा कि हमें स्वस्थ रहना है तो उसके लिए पर्यावरण को स्वच्छ और स्वस्थ रखना होगा। पर्यावरण शुद्ध और स्वस्थ होगा तभी आगे आने वाली पीढ़ी भी स्वस्थ रहेगी।वर्तमान में चल रहे जल संकट को रोकने के लिए उन्होंने वृक्षारोपण को जरूरी बताते हुए कहा कि आज यूकोलिपटिस जैसे पेडो की बजाय पीपल, वट, जामुन, नीम जैसे फलदार और औषधीय पौधों को लगाने की जरूरत है। उन्होंने सभी का आह्वान किया कि वे अपने जन्मदिवस दिवस पर पेड़ लगाने का कार्यक्रम बनाएं, बहाना नहीं बनायें।
वेबिनार को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र में तैनात प्रमुख आयकर आयुक्त पतंजलि झा ने नदियों के किनारे वृक्षारोपण को जरूरी बताते हुए कहा कि वृक्षारोपण के लिए सरकार के भरोसे ना रहे, खुद ही आगे आना होगा। जंगल बचाने के लिए प्रॉपर प्लानिंग की जरूरत है। उन्होंने किसानों से मल्टी लेयर फार्मिंग की आवश्यकता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज नीम, पीपल बरगद जैसे पेड़ों के साथ-साथ तुलसी अश्वगंधा गिलोय इनकी भी बहुत आवश्यकता है। व्यक्ति के जीवन को बचाने में उनकी बड़ी भूमिका है। इसलिए पौधों का चयन करते समय यह अवश्य ध्यान रखें कि वे धरती और मानव जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं
वेबिनार को संबोधित करते हुए उत्तराखंड सरकार के मुख्य सलाहकार डॉ रघुवीर सिंह रावत ने जैविक खेती के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि जैसे जैसे हम जैविक खेती की ओर बढ़ेंगे, वैसे ही वातावरण शुद्ध होगा। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद सहित बहुत सारे शास्त्रों में लगभग 10,000 वृक्षों को चिन्हित किया गया है जो प्रकृति के लिए, मानव जीवन के लिए उपयोगी हैं। आज उन्हीं के सघन वन जरूरी है। आज पौधारोपण तो होते हैं लेकिन उनका रक्षण नहीं हो पाता। आज पौधों को लगाने के बाद उसके नियमित रूप से संरक्षण की जरूरत है।
वेबिनार में भारत-तिब्बत समन्वय संघ के ग्वालियर से जुड़े राष्ट्रीय संगठन मंत्री नरेंद्र पाल सिंह भदौरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिस देश में कभी दूध-दही की नदियां बहती थीं, वहां आज पानी बोतल में और ऑक्सीजन पैक बिक रहा है, यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि हम अपनी संस्कृति से विरत हो रहे हैं । जल, जंगल व जमीन की रक्षा से ही मानव जीवन संभव है और बीटीएसएस के राष्ट्रीय संयोजक हेमेन्द्र तोमर जी के नेतृत्व में इस दिशा में जन जागरण कर रहा है क्योंकि भारत के साथ तिब्बत के पर्यावरण की भी चिंता हमें हैं।
तिब्बत सरकार के दिल्ली स्थित भारत-तिब्बत समन्वय केंद्र इटको के संबंध में जिग्मे सुल्ट्रीम ने अपने जीवन से जुड़े बहुत से प्रसंगों के आधार पर विषय सम्बन्धी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि चीन के कब्जे में कैलाश-मानसरोवर से निकली कई नदियों को चीन अप्राकृतिक रूप से बाधित व प्रदूषित कर चुका है, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ रहा है । ब्रह्मपुत्र नदी को भी उसने बाधित कर रखा है और इस तरह नियंत्रित किया है कि जब चाहे वह नॉर्थ ईस्ट में जनजीवन को दुष्प्रभावित कर सकता है। उन्होंने कहा कि तिब्बत के 46 हजार ग्लेशियर में 8764 पिघल चुके हैं, जिनमें से 200 से ज्यादा फटने को तैयार हैं। चीन ने तिब्बत के 50 फ़ीसदी जंगलों को भी नष्ट कर दिया है। इससे सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव यहां पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हमारे अपने तिब्बतियों की भारत में बनी बस्तियों में पानी के संसाधन हमने स्वयं विकसित किए हैं।
टेरियर्स फाउंडेशन के संस्थापक व बीटीएसएस के राष्ट्रीय पर्यावरण प्रभारी कर्नल डॉ एचआरएस राणा ने कहा कि हमें जितनी जरूरत हो, बस प्रकृति से उतना ही संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। वह बोले कि हम यहां चर्चा कर रहे हैं लेकिन इसे धरातल पर लागू करने के लिए नई पीढ़ी व विद्यार्थी वर्ग को आगे आना होगा, तभी सार्थकता होगी। उन्होंने लद्दाख, मसूरी व बेंगलुरु के असंख्य संस्मरण के साथ बात रखते हुए सेना के इको टास्क फोर्स की उपलब्धियां भी गिनायीं। कार्यक्रम का सफल संचालन करते डीएवी विवि, जालंधर के प्रो राहुल तोमर ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। लगभग 200 की संख्या में इस गूगल मीट में शामिल लोगों में दुनिया के कई देशों से लोग जुड़े। वेबिनार के तकनीकी सहयोगी आशुतोष गुप्ता व विजय मान रहे। बीटीएसएस के पदाधिकारी डॉ राहुल ने बताया कि जल्द ही अन्य वेबिनार बीटीएसएस करने जा रहा है ताकि पर्यावरण, मानव अधिकार, न्याय को तिब्बत व भारत के हित में अनुकूल बनाया जा सके।