गौरव गोगोई ने अपने संबोधन में कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी विषय पर बोलने के समय पंडित नेहरू जी और कांग्रेस का नाम कितनी बार लेते हैं—ऑपरेशन सिंदूर-पंडित नेहरू जी का नाम 14 बार और कांग्रेस का नाम 50 बार, संविधान की 75वीं वर्षगांठ- पंडित नेहरू जी का नाम 10 बार और कांग्रेस का नाम 26 बार, 2022 में राष्ट्रपति अभिभाषण- पंडित नेहरू जी का नाम 15 बार और 2020 में राष्ट्रपति अभिभाषण- पंडित नेहरू जी का नाम 20 बार लिया।
नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद में इस पर विशेष चर्चा का आयोजन किया गया है। पीएम मोदी के बयान के बाद कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने अपने संबोधन में कहा कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी विषय पर बोलने के समय पंडित नेहरू जी और कांग्रेस का नाम कितनी बार लेते हैं—ऑपरेशन सिंदूर-पंडित नेहरू जी का नाम 14 बार और कांग्रेस का नाम 50 बार, संविधान की 75वीं वर्षगांठ- पंडित नेहरू जी का नाम 10 बार और कांग्रेस का नाम 26 बार, 2022 में राष्ट्रपति अभिभाषण- पंडित नेहरू जी का नाम 15 बार और 2020 में राष्ट्रपति अभिभाषण- पंडित नेहरू जी का नाम 20 बार लिया। मैं बड़ी विनम्रता से नरेंद्र मोदी जी और उनके पूरे सिस्टम से कहना चाहता हूं कि, आप जितनी भी कोशिश कर लें-पंडित नेहरू जी के योगदान पर एक भी काला दाग नहीं लगा पाएंगे।
इसके साथ ही उन्होंने कहा, मैं वंदे मातरम् पर हो रही महत्वपूर्ण चर्चा में भाग लेने के लिए खड़ा हूं। इस अवसर पर मैं बंगाल की उस पवित्र भूमि को नमन करना चाहता हूं-जिस भूमि से ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी, राजा राममोहन रॉय जी, बंकिम चंद्र चटर्जी जी, स्वामी विवेकानंद जी, अरबिंदो घोष जी, खुदीराम बोस जी, कवि नज़रुल इस्लाम जी, रवींद्रनाथ टैगोर जी और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी आए। बंगाल की इस पवित्र भूमि में एक अद्भुत ताकत है। जिस भूमि ने हमारे देश को ना सिर्फ हमारा राष्ट्रगान दिया, बल्कि राष्ट्रगीत भी दिया।
उस समय के कवि, लेखकों ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, ऐसी कविताएं रची, ऐसे गीत रचे, जिनके शब्दों से लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों का जुल्म सहने की ताकत मिली। वंदे मातरम्, रवींद्रनाथ टैगोर जी के Where the mind is without fear, झंडा ऊंचा रहे हमारा, सरफ़रोशी की तमन्ना, इंकलाब जिंदाबाद, करो या मरो, जय हिंद, सत्यमेव जयते और भारत छोड़ो जैसे नारों, गीतों ने देश और समाज को ताकत दी। मंगल पांडे जी के विद्रोह की असफलता के बाद भारत में एक बेचैनी थी। देश में अंग्रेजों का जुल्म बढ़ गया था। ऐसे में, बंकिम चंद्र चटर्जी जी ने 1872 में पहली दो पंक्तियां लिखीं, जो आज हमारे राष्ट्रगीत का भाग हैं। फिर बंकिम चंद्र चटर्जी जी ने करीब 9-10 साल बाद आनंदमठ लिखा, जहां पर उन दो पंक्तियों में उन्होंने कई और पंक्तियां जोड़ीं। आनंदमठ जब लिखा गया, तब ईस्ट इंडिया कंपनी हमारे किसानों पर ऐसे टैक्स लगा रही थी, जिसके कारण जीना बहुत मुश्किल हो गया था।
लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने आगे कहा, वंदे मातरम्’ एक नारा कैसे बना? असल में ये एक गीत था, जिसका उल्लेख आनंदमठ में मिलता है, लेकिन 1905 में ये एक राजनीतिक नारा बनकर सामने आया। 1905 में वायसराय कर्जन ने बंगाल के दो भाग कर दिए। कर्जन ने सोचा कि ऐसा कर वो बंगाल और पूरे देश पर एक गहरी चोट करेगा, लेकिन यही उसकी गलती थी। यही वो पल था, जब स्वतंत्रता संग्राम को स्वदेशी आंदोलन के जरिए एक गहरी ताकत मिली। जिसमें ये संदेश गया कि भारत को एक नई दृष्टि के साथ विद्रोह करना है।
आने वाले समय में ‘वंदे मातरम्’ पूरे देश में बड़े व्यापक रूप से फैला। इसके पूरे देश में फैलने में कई माध्यमों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पैम्फ्लेट और पब्लिकेशन के द्वारा बंगाल से निकला ये नारा पंजाब, महाराष्ट्र और मद्रास पहुंचा। ट्रांसलेशन के जरिए ‘वंदे मातरम्’ और आनंदमठ की व्याख्या और मूल भावना पूरे देश में पहुंची। धीरे-धीरे ‘वंदे मातरम्’ का ये नारा सिर्फ स्वतंत्रता सेनानियों तक नहीं रहा, छात्रों के बीच भी पहुंच गया।
उन्होंने आगे कहा, साल 1937 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी में यह निर्णय लिया गया था कि जहां पर भी नेशनल गैदरिंग होगी, वहां पर हम ‘वंदे मातरम’ की पंक्तियों को गाएंगे। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने इस निर्णय की खूब आलोचना की। इतना ही नहीं, मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा ने इसे राजनीतिक रूप से देखा और कांग्रेस पार्टी की निंदा की। लेकिन अगर कांग्रेस पार्टी चलेगी तो वह किसी मुस्लिम लीग व हिंदू महासभा के द्वारा नहीं, बल्कि भारत की जनता के साथ चलेगी।