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श्रावण मास का महात्म्य सुनने मात्र से सिद्धि प्राप्त होती है : पंडित देवेंद्र भट्ट

श्रावण मास संवत 2080 विक्रमी, शाके 1945, सन 2023—हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास से वर्ष/संवत प्रारंभ होता है । मास क्रम में सावन , पांचवा महीना होता है। इस मास की पूर्णिमा , श्रावण नक्षत्र में होने के कारण भी इसे श्रावण मास कहा जाता है।

By Abhimanyu 
Updated Date

पं. देवेंद्र भट्ट (गुरु जी)

पढ़ें :- Sawan Special: शिवभक्तों को सावन में भूले भी नहीं करने चाहिए ये काम, वरना भुगतना पड़ सकता है भारी नुक्सान

श्रावण मास संवत 2080 विक्रमी, शाके 1945, सन 2023—हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास से वर्ष/संवत प्रारंभ होता है । मास क्रम में सावन , पांचवा महीना होता है। इस मास की पूर्णिमा , श्रावण नक्षत्र में होने के कारण भी इसे श्रावण मास कहा जाता है। देवाधिदेव शिव ने स्वयं कहा है–

” श्रवणर्क्षं पौर्णिमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत:।।”

अर्थात श्रावण मास का महात्म्य सुनने (श्रवण) मात्र से सिद्धि प्राप्त होती है अतः मुझे सर्वाधिक प्रिय है। श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी का त्योहार मनाते है। एकादशी को पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है जिसमे व्रत पूजन और रात्रि जागरण से साधक के पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
श्रावण पूर्णिमा को रक्षा बंधन मनाए जाने का विधान है। विष्णु पुराण और भविष्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि की समस्त भूमि दान में मांग ली परंतु बलि को वरदान देने के कारण उन्हें राजा बलि के साथ पाताल लोक में निवास करना पड़ा। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि को भाई समान मानकर उसे रक्षासूत्र बांधा और भगवान विष्णु को मुक्त कराया।
” येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥”

अधिकमास—

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अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। ये सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाता है। चूंकि प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को संतुलित करने हेतु हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास या पुरुषोत्तम मास का नाम दिया गया है। 2023 से पहले श्रावण अधिक का संयोग 1947, 1966, 1985 और 2004 में बना था। पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप का वध नियत किसी माह में संभव नहीं था अतः उसके वध के लिए अधिकमास का विधान हुआ। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अधिक मास में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. नामकरण, विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि वर्जित होता है।

इस मास में श्रीमद्भागवत गीता में पुरुषोत्तम मास का महामात्य, श्रीराम कथा वाचन, विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र पाठ का वाचन और गीता के पुरुषोत्तम नाम के 14वें अध्याय का नित्य अर्थ सहित पाठ करना चाहिए। इस माह में विवाह, नामकरण, अष्टाकादि श्राद्ध, तिलक, मुंडन, यज्ञोपवीत, कर्णछेदन, गृह प्रवेश, देव-प्रतिष्ठा, संन्यास अथवा शिष्य दीक्षा लेना, यज्ञ, आदि शुभकर्मों और मांगलिक कार्यों का भी निषेध है। पुरुषोत्तम माह में किसी भी प्रकार का व्यसन नहीं करें और मांसाहार से दूर रहें। मांस, शहद, चावल का मांड़, उड़द, राई, मसूर, मूली, प्याज, लहसुन, बासी अन्न, नशीले पदार्थ आदि नहीं खाने चाहिए। वस्त्र आभूषण, घर, दुकान, वाहन आदि की खरीदारी नहीं की जाती है परंतु बीच में कोई शुभ मुहूर्त हो तो ज्योतिष की सलाह पर आभूषण की खरीददारी की जा सकती है। कुआं, बोरिंग, तालाब का खनन आदि का निर्माण कर सकते हैं।

श्रावण माह में रुद्राभिषेक –

भागवत पुराण, विष्णु पुराण व महाभारत में वर्णित है कि वैवस्वत मन्वंतर के प्रारंभ में कच्छप के पीठ पर मदरांचल पर्वत रखकर समुद्रमंथन किया गया था। इस मंथन में कालकूट नामक महा विष निकला था जो देवों के हिस्से में आया। इस महाविष को देवताओं के निवेदन पर महादेव शंकर ने पान किया जिसके दुष्प्रभाव से उनका शरीर नीला पड़ गया। महादेव के शरीर का तापमान इतना बढ़ गया कि उसको शीतल करने हेतु क्षीर सागर में उन्हें आसन देकर दूध से लगातार स्नान कराया गया। अतः सावन माह में रुद्र के अभिषेक का विधान है। अलग अलग समान से रुद्र के अभिषेक का फल भी अलग अलग है।
1) दूध से – संतान सुख और पाप नाश हेतु।
2) गन्ने के रस से– आर्थिक परेशानी दूर होती है।
3) सरसो का तेल– कुंडली दोष निवारण एवं शत्रु पराजय
4) इत्र से– मानसिक रोग दूर होते है।
5) घी से– अच्छी सेहत, धन प्राप्ति।
6) शहद से — मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा।
7) दही से — बाधा दूर, भवन वाहन सुख।
8) कुश से– आरोग्य प्राप्त होता है।

शिव वास की गणना

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शिव वास देखने की विधि के लिए सबसे पहले तिथि को देखें। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा को 1 से 15 और कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 16 से 30 मान दें। इसके बाद जिस भी तिथि के लिए हमें देखना हो उसे 2 से गुणा करें और गुणनफल में 5 जोड़कर उसे 7 से भाग दें। शेषफल के अनुसार शिव वास जानें।
‘तिथिं च द्विगुणी कृत्वा पुनः पञ्च समन्वितम ।
सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।’

शेषफल के अनुसार शिव वास का स्थान और उसका फल इस प्रकार है:

1 – कैलाश में : सुखदायी
2 – गौरी पार्श्व में : सुख और सम्पदा
3 – वृषारूढ़ : अभीष्ट सिद्धि
4 – सभा : संताप
5 – भोजन : पीड़ादायी
6 – क्रीड़ारत : कष्ट
0 – श्मशान : मृत्यु

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः । वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभायां संतापकारिणी।
भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च । श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।

सम्यक विचारोपरांत इस वर्ष श्रावण में —

1) शुद्ध श्रावण कृष्ण पक्ष
प्रतिपदा – 4 जुलाई
चतुर्थी — 6 जुलाई
पंचमी — 7 जुलाई
अष्टमी — 10 जुलाई
एकादशी — 13 जुलाई
द्वादशी — 14 जुलाई
अमावस्या— 17 जुलाई

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2) अधिक श्रावण शुक्ल पक्ष
द्वितीय — 19 जुलाई
पंचमी — 23 जुलाई
षष्ठी – 24 जुलाई
नवमी – 27 जुलाई
द्वादशी – 30 जुलाई
त्रयोदशी – 31 जुलाई

3) अधिक श्रावण कृष्ण पक्ष
प्रतिपदा– 2 अगस्त
चतुर्थी – 5 अगस्त
पंचमी – 6 अगस्त
अष्टमी – 8 अगस्त
एकादशी — 11/12 अगस्त
द्वादशी — 13 अगस्त
अमावस्या – 16 अगस्त

4) शुद्ध श्रावण शुक्ल पक्ष
द्वितीय – 18 अगस्त
पंचमी – 21 अगस्त
षष्ठी – 22 अगस्त
नवमी – 25 अगस्त
द्वादशी — 28 अगस्त
त्रयोदशी – 29 अगस्त

रुद्राभिषेक में रुद्राष्टाध्यायी के पाठ के साथ रुद्र का अभिषेक किया जाता है। रुद्राष्टाध्यायी का मूल स्रोत शुक्ल यजुर्वेद में दिया है।

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