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बंगाल की जनता ने लुटाया दीदी पर प्यार, सादगी व तेजतर्रार छवि पड़ी भारी

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से सियासी सफर शुरू करने के बाद ममता बनर्जी एनडीए में भी रहीं । इसके बाद उन्होंने आगे चलकर अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा है। बंगाल चुनाव-2021 के मतगणना रुझान तो यही बता रहे हैं कि राज्य में तीसरी बार उनके नेतृत्व में तृणमूल की सरकार बनना तय है। 

By संतोष सिंह 
Updated Date

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से सियासी सफर शुरू करने के बाद ममता बनर्जी एनडीए में भी रहीं । इसके बाद उन्होंने आगे चलकर अपनी अलग पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाई। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा है। बंगाल चुनाव-2021 के मतगणना रुझान तो यही बता रहे हैं कि राज्य में तीसरी बार उनके नेतृत्व में तृणमूल की सरकार बनना तय है।

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बचपन में ममता बनर्जी के सिर से उठ गया था पिता का साया

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जन्म 5 जनवरी 1955 को कोलकाता में हुआ था। ममता बनर्जी के जन्म के कुछ साल बाद ही उनके पिता प्रोमिलेश्वर बनर्जी का निधन हो गया था। पिता की मौत के बाद ममता बनर्जी की मां गायत्री बनर्जी पर पांच बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ गई। घर में हमेशा आर्थिक तंगी रहती थी। ममता अपनी मां के जिम्मेदारियों में हाथ बंटाना बचपन से ही शुरू कर दिया था। ममता बनर्जी की परवरिश उनके छह भाईयों और बहनों के साथ हुई थी।

इतिहास व कानून की है पढ़ाई

ममता बनर्जी बचपन से ही राजनीति व पढ़ाई दोनों में रुचि रखती थीं। उन्होंने कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की। इसके अलावा ममता बनर्जी ने बीएड की भी डिग्री ली और कोलकाता के जोगेश चौधरी लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की।

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सूती साड़ी और हवाई चप्पल है पसंदीदा पहनावा

अधिकतर राजनेता अपने स्टाइलिश पहनावे को भी लेकर चर्चा में रहते हैं। खासतौर पर महिला राजनेता अपनी साड़ियों की पसंद को लेकर चर्चा में रहती हैं। कोई कॉटन साड़ी पहनना पसंद करती हैं तो कोई साड़ी पर सदरी पहनन पसंद करती हैं। मगर ममता बनर्जी का लाइफस्टाइल सबसे अलग है। वह हमेशा सूती सफेद साड़ी पहनती हैं। चाहे घर में हों या संसद भवन में, रैली हो या किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में ममता बनर्जी हमेशा साधारण रंग की साड़ी पहनना पसंद करती हैं। कभी-कभी उनकी साड़ी में नीले या किसी हल्के रंग का बॉर्डर जरूर देखने को मिल जाता है। ममता बनर्जी पैरों में रबर की हवाई चप्पल पहनती हैं।

ममता हैं चित्रकार और कवि, अटलजी घर गए तो दंग रह गए

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चित्रकार और कवि भी हैं। ममता बनर्जी को क्रिकेट काफी पसंद है। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी ममता बनर्जी अपने पुराने घर में ही रहती हैं। जहां उनका जन्म हुआ था।  जुलाई 2000 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ममता बनर्जी के कालीघाट इलाके की हरीश चटर्जी स्ट्रीट की संकरी गलियों में स्थित ममता बनर्जी के घर गए थे। अटलजी ने बनर्जी की मां गायत्री देवी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था। वाजपेयी उनका घर देखकर दंग रह गए।

कॉलेज के दिनों में ही कांग्रेस से जुड़ गईं

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कॉलेज के दिनों में ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस की सदस्यता प्राप्त कर राजनीति में प्रवेश कर लिया था। वर्ष 1976 से 1980 तक वह बंगाल महिला कांग्रेस व अभा युवा कांग्रेस की सचिव रहीं। ममता बनर्जी ने विवाह नहीं किया है।

1984 में सोमनाथ चटर्जी को हराया

वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में सोमनाथ चटर्जी जैसे दिग्गज वामपंथी नेता को हराकर ममता बनर्जी पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में आईं। सोम दा का हराने वाली वह अकेली नेता हैं। वर्ष 1989 में हर राज्य में कांग्रेस की हार होने के कारण ममता बनर्जी को भी अपनी सीट गंवानी पड़ी, लेकिन 1991 में वह दोबारा मैदान में उतरी और कोलकाता के दक्षिणी निर्वाचन क्षेत्र से जीत गई। इस सीट पर वह आगामी हर चुनाव (1996, 1998, 1999, 2004 और 2009) में जीतती रहीं।

नरसिंह राव व अटल सरकार में रहीं कैबिनेट मंत्री

वर्ष 1991 में पी.वी नरसिंह राव के कार्यकाल में ममता बनर्जी, मानव संसाधन विकास, खेल और युवा मामलों, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की राज्यमंत्री बनीं। कांग्रेस पार्टी से मतभेद होने के बाद ममता बनर्जी ने 1997 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। वर्ष 1999 में ममता बनर्जी बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए एनडीए गठबंधन से जुड़ कर रेल मंत्री बनीं। वर्ष 2000 में ममता बनर्जी ने अपना पहला रेल बजट संसद में पेश किया। वर्ष 2001 में मनमुटाव के चलते ममता बनर्जी बीजेपी से अलग हो गईं और आगामी चुनाव के लिए फिर से कांग्रेस की ओर चली गईं। 2004 में वह कोयला और खाद्यान्न मंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल हुईं। वर्ष 2009 में ममता बनर्जी फिर से चुनाव जीत लोकसभा पहुंचीं। इस बार वह फिर कैबिनेट में शामिल होने के बाद रेल मंत्री बनाई गईं. लेकिन इस पद पर वह सिर्फ दो वर्ष तक ही रह पाईं।

2011 में छोड़ा था रेल मंत्री पद

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वर्ष 2011 में कांग्रेस गठबंधन में शामिल तृणमूल कांग्रेस ने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बल पर राज्य विधानसभा चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री निर्वाचित होने के बाद रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।

 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का वर्चस्व खत्म करना ममता की सबसे बड़ी कामयाबी

बंगाल की राजनीति पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का वर्चस्व खत्म करना ममता की सबसे बड़ी कामयाबी रही। उन्होंने लगभग 34 वर्ष लंबे शासनकाल को समाप्त करते हुए मुख्यमंत्री पद हासिल किया। वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री भी हैं।  रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने किराए बढ़ाए गए यात्रियों को राहत देने पर पूरा जोर दिया।

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