सनातन धर्म में भगगवान शिव के भक्त गण अपने आराध्य की कृपा पाने के लिए कठिन व्रत और तप करते है। पौराणिक ग्रंथों बताया गया है कि भगवान शिव बहुत दयालु और कृपालु है।
pradosh kaal mein karen shivji ki pooja : सनातन धर्म में भगगवान शिव के भक्त गण अपने आराध्य की कृपा पाने के लिए कठिन व्रत और तप करते है। पौराणिक ग्रंथों बताया गया है कि भगवान शिव बहुत दयालु और कृपालु है। भक्तों पर शीघ्रकृपा बरसाते है। भगवान शिव की विशेष पूजा के प्रदोष व्रत का पालन करने विशेष फल है। इसी प्रकार से प्रदोष काल में पूरे विधि विधान से भगवान शिव की माता पार्वती के संग पूजा करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। प्रदोष व्रत सायंकाल, गोधूलि बेला में करने का विधान है। धर्मशास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गन्ने के रस द्वारा शिव जी का रूद्राभिषेक प्रदोष काल में करने का निर्देश दिया गया है।
प्रदोष का भगवान शिव के साथ विशेष संबंध है। ‘प्रदोषो रजनीमुखम’ रात्रि के प्रारंभ की बेला प्रदोष नाम से संबोधित की जाती है। रात्रि शिव को विशेष प्रिय है। मुख्यतः प्रदोष का अर्थ है, रात्रि का प्रारंभ।
इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव-पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं। शाम के समय फिर से स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें।