एक तरफ कोविड ने देश में तबाही मचा रही है वहीं दूसरी तरफ महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है। दरअसल, आयात शुल्क कम किए जाने संबंधी अफवाहों के झूठा साबित होने से विदेशों में खाद्य तेलों के भाव गिरावट के साथ बंद हुए।
नई दिल्ली: एक तरफ कोविड ने देश में तबाही मचा रही है वहीं दूसरी तरफ महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ रखी है। दरअसल, आयात शुल्क कम किए जाने संबंधी अफवाहों के झूठा साबित होने से विदेशों में खाद्य तेलों के भाव गिरावट के साथ बंद हुए। इसका असर दिल्ली तेल तिलहन बाजार पर भी पड़ा। यहां शुक्रवार को घरेलू तेल तिलहनों के दाम में भी नरमी रही। परिणामस्वरूप सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, बिनौला तथा पाम एवं पामोलीन तेल की कीमत गिरावट दर्ज हुई।
आयातित तेलों के दाम घटने का असर सरसों, मूंगफली, सोयाबीन, बिनौला, पाम और पामोलीन पर भी दिखा जिनके भाव गिरावट के साथ बंद हुए। आपको बता दें, सरसो तेल में मिलावट पर रोक : 8 जून से सरसों तेल की मिलावट पर रोक लगाने के फैसले के बाद सोयाबीन डीगम और पामोलीन की मांग कमजोर हुई है। इसकी वजह से इन आयातित तेलों के भाव भी काफी नरम पड़े हैं। इस रोक की वजह से घरेलू उपभोक्ताओं को बिना मिलावट वाला तेल उपलब्ध होगा वहीं देश में सरसों का आगामी उत्पादन बढ़ना तय है क्योंकि मौजूदा ऊपज के लिए किसानों को बेहतर दाम मिले हैं।
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सोयाबीन के बीज के लिए अच्छे दाने की किल्लत है। सरकार को इन जगहों पर बीज के लिए सोयाबीन के बेहतर दाने का इंतजाम जल्द से जल्द करना चाहिए। सूत्रों की माने तो कि तेल- तिलहन बाजार में झूठी अफवाहों के कारण किसानों, उत्पादकों और उद्योग सभी को नुकसान होता है। ऐसे में सरकार को अफवाह फैलाने वाले शरारती तत्वों से कड़ाई से निपटना चाहिए। देश को यदि विदेशी खाद्य तेल कंपनियों की मनमानी से बचाना है तो तेल तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करना जरूरी है।
बाजार में थोक भाव इस प्रकार रहे- (भाव- रुपए प्रति क्विंटल)