Krishna Janmashtami 2025 : भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी पर अमृतसिद्धि और सर्वार्थसिद्धि का अद्भुत योग के साथ ही वृद्धि, ध्रुव, श्रीवत्स, गजलक्ष्मी, ध्वांक्ष और बुधादित्य योग भी बन रहा है। जो बहुत शुभ माना जाता है। ये 6 संयोग इस पर्व को और भी खास बना रहे हैं।
Krishna Janmashtami 2025 : भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार जन्माष्टमी पर अमृतसिद्धि और सर्वार्थसिद्धि का अद्भुत योग के साथ ही वृद्धि, ध्रुव, श्रीवत्स, गजलक्ष्मी, ध्वांक्ष और बुधादित्य योग भी बन रहा है। जो बहुत शुभ माना जाता है। ये 6 संयोग इस पर्व को और भी खास बना रहे हैं।
वायु पुराण में जन्माष्टमी की है बड़ी महिमा
“वायु पुराण” में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। इसमें लिखा है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है। ऐसा भी लिखा है और जो उपवास करता है, जप-ध्यान करके उत्सव मना के फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियां तार लेता है । वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पाने में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन व्रत रखने और भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण की आराधना करने से संतान की कामना की पूर्ति होती है।
इन नियमों का करें पालन
इस पावन दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा के साथ ही गाय की भी पूजा करें। पूजा स्थल पर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ गाय की मूर्ति भी रखें। इसके साथ ही भगवान श्री कृष्ण की पूजा में गाय के दूध से बने घी का इस्तेमाल करें।
कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारण समय
कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना करें। व्रत का पारण अगले दिन 17 अगस्त को 05:51 सुबह के बाद किया जाएगा।
पूजा के लिए ये मुहूर्त है शुभ
पूजा का समय – 12:04 रात्रि से 12:47 रात्रि, अगस्त 17
अवधि – 43 मिनट्स
खीरे से कराएं भगवान का जन्म
भगवान के जन्म के समय डंठल वाले खीरे का उपयोग किया जाता है। डंठल वाले खीरे को गर्भनाल की तरह माना जाता है। श्री कृष्ण के जन्म के बाद डंठल वाले खीरे को डंठल से उसी तरह अलग कर दिया जाता है जैसे गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चे को नाल से अलग किया जाता है। जन्माष्टमी पर खीरा काटने का मतलब बाल गोपाल को मां देवकी के गर्भ से अलग करना है।