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देश की राजनीति में घुली ‘धर्म की अफीम’, अब रोजगार, महंगाई और विकास नहीं रह गया मुद्दा

'बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार' 'हम मोदीजी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं'। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब ऐसे नारे सामने आए तो कांग्रेस सरकार से नाखुश जनता को एक उम्मीद दिखी। उम्मीद थी कि मोदी सरकार आने के बाद वाकई उनके 'अच्छे दिन' आ जाएंगे।

By संतोष सिंह 
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लखनऊ। ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ ‘हम मोदीजी को लाने वाले हैं, अच्छे दिन आने वाले हैं’। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब ऐसे नारे सामने आए तो कांग्रेस सरकार से नाखुश जनता को एक उम्मीद दिखी। उम्मीद थी कि मोदी सरकार आने के बाद वाकई उनके ‘अच्छे दिन’ आ जाएंगे। इसी उम्मीद से देश की जनता ने बीजेपी को जमकर वोट दे दिया और 282 सीटें जीती। देश में इतिहास रचते हुए ये पहली बार था जब किसी गैर-कांग्रेसी पार्टी ने बहुमत हासिल किया था। 26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। पांच साल बाद 2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए इस बार 23 करोड़ से ज्यादा लोगों ने बीजेपी को वोट दिया और 303 सीटें जीतकर नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल बीतने में कुछ महीने शेष बचे हैं।

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देश की राजनीति में पिछले एक दशक से रोजगार,महंगाई और विकास के समान्तर धार्मिक मुददे अधिक प्रभाशाली होते गए। अयोध्या, मथुरा काशी,हिंदू धार्मिक स्थलों का विकास, धीरे धीरे प्रमुख मुद्दा बनता गया। मंहगाई, पेट्रोल-डीजल व रसोई गैस की आसमान छूती कीमतों, बेरोजगारी सहित अन्य तमाम मुद्दे यूपी सरकार की तुलना में काफी बढ़ गए हैं। मोदी सरकार में विदेशी कर्ज भी बढ़ा है। हर साल औसतन 25 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज भारत पर बढ़ा है। मोदी सरकार से पहले देश पर करीब 409 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था, जो अब बढ़कर डेढ़ गुना यानी करीब 613 अरब डॉलर पहुंच गया है। लेकिन देश ज्वलंत मुद्दों पर बहस करने के बजाए सत्तारूढ़ दल की ओर से धर्म और राष्ट्रवाद को प्रमुख मुद्दा बनाया जाता रहा है।

2019 में बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद से हिंदू राष्ट्र के संकेत और पुख़्ता हो चुके हैं।इसके बाद हर चीज़ उग्र हो चुकी है। नए क़ानूनों को निर्माण, संविधान संशोधन इत्यादि हुए हैं। असल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाए रखने के धार्मिक मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। जबकि देश आर्थिक स्थिति वाक़ई चिंताजनक है। रोजगार की कमी, महंगाई आदि। इससे आप सहज अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आइडेंटिटी पॉलिटिक्स असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने का एक तरीक़ा है जिसका ख़ूब इस्तेमाल होने लगा है। ये सब ज़ाहिर है उस ध्रुवीकरण के अलावा हो रहा है जिसका धार्मिक मुद्दों का चुनावों के लिए बढ़चढ़कर इस्तेमाल कि जा रहा है।

मोदी सरकार पुरानी पेंशन को वापस लाने की पक्षधर नहीं

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मोदी सरकार पुरानी पेंशन को वापस लाने की पक्षधर नहीं है कि इसको लागू किया जाए, क्योंकि, इसका अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। लेकिन विपक्षी दल कर्मचारियों व पेंशनधारकों को अपने पक्ष में करने के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली पर जोर दे रहे हैं। पेंशन भोगी कर्मचारियों का बहुत बड़ा वोटर वर्ग है। इसको लुभाने के लिए राजनीतिक पार्टियां इसे हथियार बनाए हुए हैं। सरकार का तर्क है कि पुरानी पेंशन स्कीम से सरकारी खजाने पर ज्यादा बोझ पड़ता है। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कटौती नहीं होती और पूरा बोझ ट्रेजरी पर डाला जाता था। जाहिर है, सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने में राजकोष पर अधिक बोझ पड़ता होगा। जिस वजह से नई पेंशन योजना को लागू किया गया।

नौकरियों का क्या हुआ?

मोदी सरकार में बेरोजगारी दर जमकर बढ़ी है। 2019 के चुनाव के बाद सरकार के ही एक सर्वे में सामने आया था कि देश में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी है। ये आंकड़ा 45 साल में सबसे ज्यादा था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मोदी सरकार के आने से पहले देश में बेरोजगारी दर 3.4 फीसदी थी, जो इस समय बढ़कर 8.1 फीसदी हो गई है।

शिक्षा का क्या हुआ?

किसी भी देश के विकास के लिए अच्छी शिक्षा बहुत जरूरी है। मोदी सरकार में शिक्षा का बजट तो बढ़ा है, लेकिन ज्यादा नहीं। 9 साल में शिक्षा पर खर्च 30 हजार करोड़ रुपये ही बढ़ा है। इतना ही नहीं, देश में स्कूल भी कम हो गए हैं। मोदी सरकार के आने से पहले देश में 15.18 लाख स्कूल थे, जो अब घटकर 14.89 लाख हो गए हैं।

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मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की कमाई दोगुनी करने का किया था वादा 

मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की कमाई दोगुनी करने का वादा किया था। अभी 2022 के आंकड़े नहीं आए हैं, लेकिन, पिछले साल लोकसभा में एग्रीकल्चर पर बनी संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट में बताया था कि 2018-19 में किसानों की हर महीने की कमाई 10,248 रुपये है, जबकि इससे पहले किसानों की कमाई और खर्च पर 2012-13 में सर्वे हुआ था। उस सर्वे में सामने आया था कि किसानों की महीने भर की कमाई 6,426 रुपये है।

डॉलर के मुकाबले रुपये को सबसे कमजोर बना दिया

20 अगस्त, 2013 को जब डॉलर के मुकाबले 64.11 रुपये प्रति डॉलर के रिकार्ड निम्न स्तर पर पहुंचा। तो उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न तो अर्थव्यवस्था की चिंता है और न ही गिरते रुपये की, उसे तो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने की फिक्र है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 26 मई 2014 को सत्ता संभाली थी तब डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 58.40 रुपये थी। उसी साल 31 दिसंबर 2014 तक रुपया गिरते-गिरते डॉलर की तुलना में 63.33 रुपये तक पहुंच गया। अब साल 2023 दिसंबर तक एक डॉलर की तुलना में 83.38 रुपया पहुंच गया है, लेकिन इस पर पीएम मोदी ने चुप्पी साध रखे हुए है।

महंगाई का क्या हुआ?

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का नारा था कि ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’, लेकिन इसके उलट मोदी सरकार में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तो आग लग गई है। 9 साल में पेट्रोल की कीमत 24 रुपये और डीजल की कीमत 34 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा बढ़ी है। पेट्रोल-डीजल के अलावा गैस सिलेंडर की कीमत भी तेजी से बढ़ी है। मोदी सरकार से पहले सब्सिडी वाला सिलेंडर 414 रुपये में मिलता था। अब सिलेंडर पर नाममात्र की सब्सिडी मिलती है। अभी रसोई गैस सिलेंडर की कीमत 11सौ रुपये तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं, 9 साल में एक किलो आटे की कीमत 52 फीसदी, एक किलो चावल की कीमत 43 फीसदी, एक लीटर दूध की कीमत 56 फीसदी और एक किलो नमक की कीमत 53 फीसदी तक बढ़ गई है।

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केंद्र सरकार ने जो भी वादे कर सत्ता में आई थी, उसमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया गया। इसीलिए राष्ट्र और राष्ट्रवाद के नाम पर बहस छेड़ी जाती है। 2019 में बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद से हिंदू राष्ट्र के संकेत और पुख़्ता हो चुके हैं। वो कहते हैं । 2019 के बाद हर चीज़ उग्र हो चुकी है, नए क़ानून, संविधान संशोधन इत्यादि हुए हैं। असल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाए रखने की भी ज़रूरत है। और असल मुद्दे अब और ज़्यादा गंभीर हो गए हैं। आर्थिक स्थिति वाक़ई चिंताजनक है। रोजगार की कमी, महंगाई, आदि तो आप ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आइडेंटिटी पॉलिटिक्स असल मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने का एक तरीक़ा है जिसका ख़ूब इस्तेमाल होने लगा है। ये सब ज़ाहिर है उस ध्रुवीकरण के अलावा हो रहा है जिसका इस्तेमाल चुनावों के लिए किया जाता है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव बीते दिनों विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी वाड्रा ने बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर बात करते हुए बीजेपी पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि देश के लोगों को राजनीतिक साजिश के तहत धर्म और जाति के नाम पर गुमराह किया जा रहा है, जिससे वे बुनियादी सवाल न पूछें। कहा कि दुर्भाग्य से राजनीति बदल गई है। राजनीति में मूल्य बदल गये हैं। लोग तब भी जागरूक थे और अब भी जागरूक हैं, लेकिन उनकी भावनाओं का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि धर्म और जाति के नाम पर लोगों का ध्यान भटकाया जा रहा है जिससे वे बुनियादी मुद्दों पर सवाल न पूछें। उन्होंने कहा कि यह एक राजनीतिक साजिश है।

प्रियंका ने पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेरोजगारी, महंगाई के बारे में क्यों कुछ नहीं बोलते? मैंने एक बार उत्तर प्रदेश की एक महिला से पूछा कि क्या उसके पास गैस सिलेंडर है, उसने कहा हां, लेकिन वह खाली था। प्रियंका ने कहा कि मोदी सरकार इसका जवाब नहीं देती कि सड़कें खराब क्यों हैं, रोजगार क्यों नहीं है और महंगाई क्यों बढ़ रही है? उन्होंने कहा कि पीएम यह भी जवाब नहीं देते कि देश में किसान प्रति दिन 27 रुपये क्यों कमा रहे हैं, और उनके उद्योगपति मित्र प्रति दिन 1,600 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।

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