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कोरोना की दूसरी लहर से ऐसा मचा हाहाकार, कहीं पर दवा गायब तो कहीं पर हवा

"सैयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का ? लग गए सारे भक्त और मीडिया गुणगान करने कि भई कोरोना पर विजय पाकर हम विश्वगुरुबन गए हैं। अब ये वैक्सीन जैसी छोटी मोटी चीज़ो का भारत में क्या काम? हमें मानवता दिखानी चाहिए, दूसरे देशों की मदद करनी चाहिए, आदि आदि.. फिर क्या था बिना सोचे समझे 6.6 करोड़ कोविड वैक्सीन की डोज़ दे दी गयीं दूसरे देशों को। वैसे इसमें मोदी जी की कोई गलती नहीं ये तो सब नक्षत्रों का खेल है। समय ही ख़राब था।  सुना नहीं है कहावत "

By आराधना शर्मा 
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डॉ अंजुलिका जोशी

लखनऊ: अभी बैठे बैठे ख्याल आया कि जून आ गया है  मतलब की आधा साल निकल चुका है और हम मार्च तक तो यही सोच रहे थे कि जी कोरोना भाईसाहब तो भाग लिए। याद नहीं प्रधानमंत्री ने ऐलान किया था कि कोविड के लिए विशेष इंतज़ाम के चलते भारत ने कोरोना पर विजय प्राप्त कर ली है जबकि बाकी सारे देश अभी भी कोरोना से जूझ रहे हैं।  इस पुण्य कृत्य ने कोरोना की जंग में उन्हें समूचे भूमण्डल का अवतार बना दिया। “सैयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का ? लग गए सारे भक्त और मीडिया गुणगान करने कि भई कोरोना पर विजय पाकर हम विश्वगुरुबन गए हैं। अब ये वैक्सीन जैसी छोटी मोटी चीज़ो का भारत में क्या काम? हमें मानवता दिखानी चाहिए, दूसरे देशों की मदद करनी चाहिए, आदि आदि.. फिर क्या था बिना सोचे समझे 6.6 करोड़ कोविड वैक्सीन की डोज़ दे दी गयीं दूसरे देशों को। वैसे इसमें मोदी जी की कोई गलती नहीं ये तो सब नक्षत्रों का खेल है। समय ही ख़राब था।  सुना नहीं है कहावत ” विनाश काले विपरीत बुद्धि”।

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तो फिर शुरू हो गया दूसरे महत्वपूर्ण कार्यों का दौर। होली जम कर मनाई गयी, कुम्भ स्नान का दौर शुरु हो गया और तो और ममता दीदी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए चुनाव प्रचार भी शुरू हो गया। इतने दिनों से लोग घर पर बैठे बैठे बोर हो गए थे तो लोगों का अथाह समुद्र जमा होने लगा। ऐसे मूर्खों को समझाने का ठेका तो मोदी जी ने लिया नहीं है तो उनकी गलती कैसे? अब जी सब्ज़ बाग़ तो दिखा दिए गए थे लेकिन अप्रैल ने जो अप्रैल फूल बनाया तो क्या मोदी, क्या भक्त और क्या मिडिया सबकी हवा हो गयी ख़राब। कोरोना वायरस भाईसाहब को भी विश्वगुरु वाली बात कुछ जमी नहीं अब वो भक्त तो थे नहीं जो चुपचाप पड़े रहते। आ गए लौट कर दूसरी लहर के रूप में। और फिर ये मामला जो शुरू हुआ तो थमने का नाम ही नहीं। लॉकडाउन पर लॉकडाउन घोषित होते गए कोरोना पर नहीं हम पर। और देखते देखते इस बीमारी ने विकराल रूप ले लिया।

शहरों में, गावों में हर जगह त्राहि त्राहि मच गयी।  अस्पताल में जगह  नहीं, बीमार के लिए दवा नहीं और साँस लेने को हवा नहीं। इस सब से हमारे संवेदन शील प्रधान मंत्री और गृह मंत्री जी इतने गहरे सदमे में चले गए कि 15 दिन नज़र ही नहीं आये। अब ऐसा नहीं है की उन्होंने कुछ किया नहीं। पता नहीं है वो 18- 18 घंटे काम करते हैं , मुश्किल सवाल पहले हल करते हैं तो वो वही सब ज़रूरी काम निपटा रहे थे।  कोरोना जैसे  छोटे अदृश्य जीव को वो कोई महत्व नहीं देते। उस से क्या डरना ? उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बताया तो था कि उसको भी जीने का अधिकार है। फिर हम उसको क्यों मारें ? आखिर अहिंसा भी कोई चीज़ है या नहीं ? उसको हम यहाँ से चम्पत करा देंगे। पहले व्हाट्सप्प पर धमकियां दे देकर उसके आत्मसम्मान को ऐसी चोट पहुंचाएंगे कि वो यहाँ से नौ दो ग्यारह हो जायेगा। अगर नहीं भागा तो गोमूत्र पिला देंगे, धुआं करके भगा देंगे या पूरे शरीर में गोबर पोत कर उसके आने का रास्ता ही बंद कर देंगे, उसका आत्मविश्वास डिगा डिगा कर उस पर विजय प्राप्त कर लेंगे। मध्य प्रदेश की मंत्री उषा ठाकुर जी ने तो बताया भी है कि हवन की आहुति से कोरोना हिन्दुस्तान को छू भी नहीं पायेगा। मतलब ये कि हम कोरोना को वैज्ञानिक तरीके से न मार कर मनोवैज्ञानिक तरीके से मार भगाएंगे।

लेकिन कोरोना भाई तो कुछ ज़्यादा ही गुस्से में थे तो उन्होंने अपना प्रकोप दिखा दिया कहीं पर दवा चाहिए तो कहीं पर हवा। अब ये मोटे काम भी मोदी जी ही करेंगे तो सोशल सर्विस का डंका बजा कर लंका लगाने वाली संस्थाएं क्या करेंगी? बी. वी. श्रीनिवास, सोनू सूद और कुमार विश्वास क्या करेंगे?  मोदी जी के पास दूसरे बड़े काम हैं  जैसे नाले की गैस से चाय बनाना, हवा से ऑक्सीजन खींच लेना, बादल से रडार को कैसे चकमा दिया जाय वगैरह वगैरह।

हमारे प्रधानमंत्री जी को ऐसा वैसा न समझैँ। उनकी तकनीकी दृष्टि बहुत पैनी है और वो उसका इस्तेमाल बड़ी कुशलता से करते हैं। 1984 में EVM जानते थे, 1987-88 में उन्होंने डिजिटल कैमरे का प्रयोग करा और 1988 में ईमेल भी लिखा।  इतने तकनिकी विशेषज्ञ के लिए हम कैसे कह सकते है की वो फेल हो गया ? इसीलिए तो मीडिया बार बार लगातार बता रहा है कि सिस्टम फेल हो गया।  क्योंकि सिस्टम अलग है और मोदी अलग।  वो दिन लद गए जब दोनों एक ही होते थे। नेहरू जी की गलती है।  वैसे भी ये लोग जो लगातार मर रहे हैं ये मोदी जी को बदनाम करने की साजिश है।  कंगना रनौत ने तो पर्दाफाश भी कर दिया कि सारे शव जो गंगा जी में दिखाये जा रहे हैं दरअसल वो वीडियो नाइजीरिया का है। धन्य हो देवी।
हमारे देश की महानता पर गौर फरमाइए यहाँ सब कुछ रुक सकता है लेकिन विवाद नहीं।

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अब जब कुछ नहीं बचा तो विपक्षी दल वैक्सीन पर बवाल मचाने लगे कि मोदी जी आपने हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेजी? पोस्टर लगाने लगे आखिरकर मरता क्या न करता उनको मजबूरन गिरफ्तार करवाना पड़ा। पोस्टर लगाने पर गिरफ्तार? ये तो पहली बार देखा और सुना। अच्छा अब समझ में आया कानून भी कोई चीज़ है? लेकिन एक बात और समझ में नहीं आयी कि मैंने अपनी रेल यात्राओं के दौरान गौर किया है कि  रास्ते में पड़ने वाली लगभग सभी दीवारें नामर्दी के इलाज या बवासीर ठीक करने के पोस्टर और विज्ञापनोँ से पटी  पड़ी रहती हैं वहां सरकार कुछ क्यों नहीं करती? शायद पता ही नहीं चलता होगा की किसने लगाया या लिखा ? लेकिन हमारे प्रधान मंत्री जी भी तो हर जगह चिपके नज़र आते हैं ? बस स्टॉप हो या मेट्रो, रेलवे स्टेशन हो या एयरपोर्ट यहाँ तक कि कोविड वैक्सीन कार्ड में भी।  पेट्रोल पंप में पेट्रोल हो या न हो प्रधान मंत्री जी का पोस्टर ज़रूर होता है। चलिए जी कोई नहीं। मोदी है  तो मुमकिन है और वैसे भी मन चंगा तो कठौती में गंगा।

 

डॉ अंजुलिका जोशी

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