मेरठ शहर में मतदाता राजनीतिक हवा के साथ नहीं बहते हैं। इस लिए यहां के प्रत्याशी सारे समीकरण ध्रुवीकरण को ध्यान में ही रखकर बनाते हैं। अब साल 2017 के चुनाव को ही देख लिजिए। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा की प्रचंड लहर थी।
UP Election 2022: मेरठ शहर में मतदाता राजनीतिक हवा के साथ नहीं बहते हैं। इस लिए यहां के प्रत्याशी सारे समीकरण ध्रुवीकरण को ध्यान में ही रखकर बनाते हैं। अब साल 2017 के चुनाव को ही देख लिजिए। 2017 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा की प्रचंड लहर थी। इतना ही नहीं तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह ने यहां बड़ी-बड़ी रैलियां की। अमीत शाह की रैली के बावजूद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई चुनाव हार गए।
हालांकि, इन्हीं लक्ष्मीकांत वाजपेई ने साल 2012 में सपा की ऐतिहासिक जीत के बावजूद यहां कमल खिलाया था। मेरठ में जब-जब मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, तब-तब भाजपा की राह मुश्किल हुई। मेरठ से डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेई आठ बार चुनाव लड़े। 1989, 1996, 2002 और 2012 में और जीत भी हासिल की। इस बार भाजपा ने वाजपेई के बेहद करीबी रहे नए चेहरे कमलदत्त शर्मा पर भरोसा जताते हुए मैदान में उतारा है।
वहीं सपा ने मौजूदा विधायक रफीक अंसारी पर ही भरोसा जताया है। बसपा ने यहां दिलशाद शौकत, तो AIMIM ने भी मुस्लिम प्रत्याशी इमरान अहमद को उतार दिया है। वहीं, कांग्रेस ने रंजन शर्मा और आप ने कपिल शर्मा को प्रत्याशी बनाकर भाजपा की चुनौती बढ़ा दी है। ऐसे में जो भी अपने खेमे के मतदाताओं को संगठित करने में कामयाब हो जाएगा, जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा।