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ओबीसी जनगणना की बीएसपी काफी समय से कर रही है मांग : मायावती

देश में ओबीसी( OBC) समाज की अलग से जनगणना की मांग तेज होती जा रही है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने ट्वीट कहा कि देश में ओबीसी समाज (OBC Society) की अलग से जनगणना कराने की मांग उनकी पार्टी शुरू से ही करती रही है। उन्होंने कहा कि अभी भी पार्टी की यही मांग है और केन्द्र सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो बीएसपी इसका संसद के अन्दर व बाहर भी जरूर समर्थन करेगी।

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। देश में ओबीसी( OBC) समाज की अलग से जनगणना की मांग तेज होती जा रही है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने ट्वीट कहा कि देश में ओबीसी समाज (OBC Society) की अलग से जनगणना कराने की मांग उनकी पार्टी शुरू से ही करती रही है। उन्होंने कहा कि अभी भी पार्टी की यही मांग है और केन्द्र सरकार अगर कोई सकारात्मक कदम उठाती है तो बीएसपी इसका संसद के अन्दर व बाहर भी जरूर समर्थन करेगी।

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बता दें कि साल 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना हुई थी। साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया था। इसके बाद साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं दर्शाया गया।

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इसी बीच साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह मंडल आयोग की सिफ़ारिश को लागू किया था। ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार के इस फ़ैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया।

जानकारों का मानना है कि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण फ़िलहाल नहीं है। मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है। हालांकि मंडल कमीशन ने साल 1931 की जनगणना को ही आधार माना था। इसके अलावा अलग-अलग राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी सर्वे और अनुमान के आधार पर इस आंकड़े को कभी थोड़ा कम कभी थोड़ा ज़्यादा करके आंकती आई हैं।

लेकिन केंद्र सरकार जाति के आधार पर कई नीतियां तैयार करती है। ताज़ा उदाहरण नीट परीक्षा का ही है, जिसके ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी के लिए आरक्षण मोदी सरकार ने लागू किया है। सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के प्रोफ़ेसर और राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने बताया कि जनगणना में आदिवासी और दलितों के बारे में पूछा जाता है, बस ग़ैर दलित और ग़ैर आदिवासियों की जाति नहीं पूछी जाती है।

इस वजह से आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के हिसाब से जिन लोगों के लिए सरकार नीतियां बनाती है। उससे पहले सरकार को ये पता होना चाहिए कि आख़िर उनकी जनसंख्या कितनी है। जातिगत जनगणना के अभाव में ये पता लगाना मुश्किल है कि सरकार की नीति और योजनाओं का लाभ सही जाति तक ठीक से पहुंच भी रहा है या नहीं। वह आगे कहते हैं कि अनुसूचित जाति, भारत की जनसंख्या में 15 प्रतिशत है और अनुसूचित जनजाति 7.5 फ़ीसदी हैं। इसी आधार पर उनको सरकारी नौकरियों, स्कूल, कॉलेज़ में आरक्षण इसी अनुपात में मिलता है।

लेकिन जनसंख्या में ओबीसी की हिस्सेदारी कितनी है, इसका कोई ठोस आंकलन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़ कुल मिला कर 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता, इस वजह से 50 फ़ीसदी में से अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण को निकाल कर बाक़ी का आरक्षण ओबीसी के खाते में डाल दिया है, लेकिन इसके अलावा ओबीसी आरक्षण का कोई आधार नहीं है। यही वजह है कि कुछ विपक्षी पार्टियां जातिगत जनगणना के पक्ष में खुल कर बोल रही है। कोरोना महामारी की वजह से जनगणना का काम भी ठीक से शुरू नहीं हो पाया है।

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