कुंडली के ग्रह चलायमान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सभी ग्रहों की चाल निश्चित है। ग्रह अपनी अवधि के अनुसार,राशियों में भ्रमण करते है। ग्रहों की ये चाल कभी वक्री तो कभी मार्गी होती है।
Vakri Graha: कुंडली के ग्रह चलायमान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सभी ग्रहों की चाल निश्चित है। ग्रह अपनी अवधि के अनुसार,राशियों में भ्रमण करते है। ग्रहों की ये चाल कभी वक्री तो कभी मार्गी होती है। वक्री ग्रह का कुंडली में उपस्थित होना महत्वपूर्ण बदलाव है। वक्री ग्रह किसी भी जातक की कुंडली में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं क्योंकि ज्योतिष के अनुसार इन्हें विशेष रूप से चेष्टा बल मिलता है। ग्रहों की चाल बदलती रहती है।
यदि कोई ग्रह कुंडली में वक्री अवस्था में स्थित है तो उसका फल अन्य ग्रहों के मुकाबले अलग तरीके से जाना जाता है। सामान्य तौर पर ऐसा माना जाता है कि शुभ ग्रह वक्री होने पर अति शुभ और अशुभ ग्रह वक्री होने पर अति अशुभ फल देने लग जाते हैं। जब कोई ग्रह उल्टा चलता प्रतीत होता है तो उसे वक्री ग्रह कहा जाता है। कुछ ग्रहों का वक्री होना जीवन में न सिर्फ खुशियां लाता हैं बल्कि व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत करता है और उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है।
वास्तव में कोई ग्रह उल्टा नहीं चलता लेकिन परिभ्रमण पथ की स्थिति के अनुसार ऐसा प्रतीत होता है कि वह उल्टी दिशा में जा रहा है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सूर्य और चंद्रमा सदैव एक गति से चलते हैं और कभी वक्री नहीं होते। वहीं दूसरी ओर राहु और केतु सदैव वक्री अवस्था में स्थित होते हैं शेष ग्रह कभी वक्री और कभी मार्गी अवस्था में आते हैं। वक्री ग्रह की समयावधि जैसे ही पूरी होती है वह ग्रह पुन्: मार्गी हो जाता है। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार जब कोई ग्रह अपनी तेज गति के कारण किसी अन्य ग्रह को पीछे छोड़ देता है तो उसे अतिचारी कहा जाता है।