सनातन धर्म में व्रत उपवास की श्रृंखला में वट सावित्री का व्रत का पालन किया जाता है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले इस व्रत त्योहार के दिन, हिंदू महिलाएं उपवास करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं।
Vat savitri vrat 2023 date : सनातन धर्म में व्रत उपवास की श्रृंखला में वट सावित्री का व्रत का पालन किया जाता है। ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले इस व्रत त्योहार के दिन, हिंदू महिलाएं उपवास करती हैं और अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं। आपको बता दें इस दिन सुहाग के लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। ज्येष्ठ माह की अमावस तिथि (amavasya tithi) के दिन पड़ने वाला यह व्रत उत्तर भारत, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा आदि जगहों पर धूम धाम से सुहागिन स्त्रियां मनाती हैं, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में पूर्णिमा तिथि के दिन यह व्रत महिलाएं रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये दोनों ही व्रत का महत्व समान है।
यह त्योहार देवी सावित्री के सम्मान में मनाया जाता है, जिन्होंने मृत्यु के देवता (यमराज) को अपने मृत पति को जीवन प्रदान करने के लिए मजबूर किया था। इस दिन महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि का आरंभ 18 मई को रात 9 बजकर 42 मिनट से होगा और अगले दिन यानी 19 मई की रात 9 बजकर 22 मिनट तक अमावस्या तिथि होगी। उदया तिथि 19 मई को है इसलिए वट सावित्री व्रत इस दिन ही रखा जाएगा।
पूजा सामग्री सूची
वट सावित्री की पूजा में लगने वाली प्रमुख सामग्रियां इस प्रकार है। इसमें सावित्री-सत्यवान की मूर्ति, कच्चा सूत, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप-अगरबत्ती, मिट्टी का दीपक, घी, बरगद का फल, मौसमी फल जैसे आम ,लीची और अन्य फल, रोली, बताशे, फूल, इत्र, सुपारी, सवा मीटर कपड़ा, नारियल, पान, धुर्वा घास, अक्षत, सिंदूर, सुहाग का समान, नगद रुपए और घर पर बने पकवान जैसे पूड़ियां, मालपुए और मिष्ठान जैसी सामग्रियां व्रत सावित्री पूजा के लिए जरूरी होती
वट सावित्री (vat savitri) व्रत के दौरान व्रती महिलाओं को काले या सफेद रंग को कपड़े नहीं पहनने चाहिए। इसके अलावा इस दिन महिलाओं को काली, सफेद या नीली रंग की चूड़ियां नहीं पहननी चाहिए। कहा जाता है कि जो महिलाएं पहली बार वट सावित्री का व्रत रख रहीं हैं, उन्हें इस व्रत की शुरुआत अपने मायके से ही करना चाहिए। दरअसल ऐसा करना शुभ माना जाता है।