वट को बरगद भी कहते है। सनातन धर्म में इस वृक्ष की होती है। हिंदू धर्म में यह आस्था का वृक्ष है। सुहागिन महिलाओं की आस्था इतनी है वो वृक्ष की परिक्रमा करके अपने अखण्ड़ सौभाग्य का भगवान महादेव से वरदान मानती है।
Vat Vriksh : वट को बरगद भी कहते है। सनातन धर्म में इस वृक्ष की होती है। हिंदू धर्म में यह आस्था का वृक्ष है। सुहागिन महिलाओं की आस्था इतनी है वो वृक्ष की परिक्रमा करके अपने अखण्ड़ सौभाग्य का भगवान महादेव से वरदान मानती है। दीर्घायु, विशालकाय, जटाधारी, घना और हरा-भरा बरगद का वृक्ष भारत में बहुतायत मात्रा में देखने को मिलता है। सनातन धर्म में इसे दिव्य वृक्ष की उपधि मिली हुई है। वट वृक्ष को ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है।इसकी छाया सीधे मन पर असर डालती है , और मन को शांत बनाये रखती है। सबसे बड़ी बात यह है कि अकाल के दिनों में भी यह वृक्ष हरा भरा रहता है, अतः इस समय पशुओं को इसके पत्ते और लोगों को इसके फल पर निर्वाह करना सरल होता है। यह वृक्ष पक्षियों और अन्य जीवों के आहार की गारंटी है।
बरगद की उत्पत्ति को लेकर सनातन धर्म में हमें वामनपुराण का एक श्लोक मिलता है। यह श्लोक है :
यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद, वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा॥
इस श्लोक के मुताबिक यक्षों के राजा मणिभद्र से वट वृक्ष की उत्पत्ति हुई।
जब सृष्टि का सृजन हो रहा था तब भगवान विष्णु की नाभि से कमल का पुष्प पैदा हुआ। ऐसे में अन्य देवताओं ने भी अन्य वनस्पतियों का सृजन किया। इनमें से यक्षों के राजा मणिभद्र ने वट वृक्ष का सृजन किया। यही वजह है कि वट वृक्ष अर्थात बरगद को कई और नाम जैसे कि ‘यक्षवास’, ‘यक्षतरु’, ‘यक्षवारुक’ आदि नामों से भी जाना जाता है।