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यूपी सरकार को फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भेजा नोटिस, कहा-RT PCR रिपोर्ट आने में देरी क्यों ?

आपको बता दें, इससे कोरोना मरीज समय पर अपना उचित इलाज शुरू नहीं कर पा रहे हैं और जिसके कारण उनकी स्थिति बेहद गंभीर हो रही है। जांच रिपोर्ट आने तक वे अनजाने में ही अन्य लोगों को संक्रमित भी कर रहे हैं। एक लॉ स्टूडेंट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार से कोरोना रिपोर्ट देने के लिए 24 घंटे अधिकतम समय सीमा तय कराने की मांग की है।

By आराधना शर्मा 
Updated Date

लखनऊ: सूबे में लगातार कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते प्रदेश में सोमवार तक लॉकडाउन लगाने का निर्देश जारी किए जा चुके हैं। जहां एक तरफ लोगों को कोरोना के प्रचंड रूप का सामना करना पद रहा है वहीं दूसरी तरफ  उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में कोरोना रिपोर्ट RT-PCR TEST आने में चार-पांच दिन से लेकर एक हफ्ते तक का समय लग रहा है।

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आपको बता दें, इससे कोरोना मरीज समय पर अपना उचित इलाज शुरू नहीं कर पा रहे हैं और जिसके कारण उनकी स्थिति बेहद गंभीर हो रही है। जांच रिपोर्ट आने तक वे अनजाने में ही अन्य लोगों को संक्रमित भी कर रहे हैं। एक लॉ स्टूडेंट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार से कोरोना रिपोर्ट देने के लिए 24 घंटे अधिकतम समय सीमा तय कराने की मांग की है।

इसके लिए यदि आवश्यक हो तो सभी जिलों में टेस्टिंग सुविधाएं बढ़ाने का अनुरोध भी किया गया है। कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। कोर्ट ने नोटिस जारी कर उत्तर प्रदेश सरकार से इस मामले पर अपना पक्ष रखने को कहा है। मामले की सुनवाई इसी विषय पर दाखिल एक अन्य मामले के साथ गुरुवार को होगी।

देर से रिपोर्ट आने के चलते समस्या बढ़ती जा रही है 

विधि छात्र उत्सव मिश्रा ने एक पत्र के माध्यम से कोर्ट से अनुरोध किया कि उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों में कोरोना की स्थिति खतरनाक होती जा रही है। कोरोना रिपोर्ट आने में देरी इस समस्या को और अधिक बढ़ा रही है। अगर रिपोर्ट समय से मिल जाए तो ऐसे रोगियों का सही समय पर इलाज शुरू हो सकेगा और उनकी जान बचाई जा सकेगी। साथ ही संक्रमण की स्थिति पता चल जाने के कारण ऐसे लोग अन्य लोगों को भी संक्रमित भी नहीं करेंगे।

याचिका में कहा गया है कि कोरोना इलाज में उपयोग की जा रही रेमडेसिविर और स्टेरॉयड जैसी दवाओं की कालाबाजारी करते हुए जिन दवाइयों को पकड़ा जा रहा है, उन्हें नियमों में ढील देकर तुरंत जिले के जिलाधिकारियों को सौंपा जाए, ताकि इस आपातकाल में उन दवाओं का कोरोना मरीजों के इलाज में उपयोग किया जा सके। इन दवाओं के पुलिस कस्टडी में लंबी अवधि तक रखने पर इसी दौरान अन्य मरीजों को इसकी कमी के कारण भारी नुकसान होने की आशंका व्यक्त की गई है।

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कोरोना के आपातकाल में भी यह शिकायत लगातार बनी हुई है कि सरकार द्वारा कोरोना मरीजों के इलाज के लिए जारी किये गये हेल्पलाइन नंबर हों या जिले के प्रमुख अधिकारियों के नंबर, जब लोग किसी सहायता के लिए इन पर फोन करते हैं तो इनके नंबर नहीं उठते। इस अवस्था में लोगों की उचित मदद नहीं हो पाती। याचिका में मांग की गई है कि इस आपातकाल में सभी हेल्पलाइन नंबर पर तत्काल सहायता देना अनिवार्य किया जाए, ताकि लोगों को सही समय पर उचित जानकारी देकर उनकी जान बचायी जा सके।

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