रामचरितमानस विवाद (Ramcharitmanas Controversy) के बीच पुरानी जातीय व्यवस्था पर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जाति व्यवस्था को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) का बयान भी काफी सुर्खियों में रहा है। संघ प्रमुख ने एक बार फिर इस पर अप्रत्यक्ष ढंग से सवाल खड़े किए हैं।
नागपुर। रामचरितमानस विवाद (Ramcharitmanas Controversy) के बीच पुरानी जातीय व्यवस्था पर इन दिनों खूब चर्चा हो रही है। जाति व्यवस्था को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) का बयान भी काफी सुर्खियों में रहा है। संघ प्रमुख ने एक बार फिर इस पर अप्रत्यक्ष ढंग से सवाल खड़े किए हैं। नागपुर में एक कार्यक्रम में कान्होलीबारा में आर्यभट्ट एस्ट्रोनोमी पार्क के उद्घाटन के दौरान बोलते हुए मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि भारत के पास पारंपरिक ज्ञान का विशाल भंडार है। कुछ स्वार्थी लोगों ने प्राचीन ग्रंथों में जानबूझकर गलत तथ्य जोड़े।
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Rss प्रमुख मोहन भागवत ने कहा- हमारे यहां पहले ग्रंथ नहीं थे, मौखिक परंपरा से चलता आ रहा था, बाद में ग्रंथ इधर-उधर हो गए और कुछ स्वार्थी लोगों ने ग्रंथ में कुछ-कुछ घुसाया जो गलत है, उन ग्रंथों, परंपराओं के ज्ञान की फिर एक बार समीक्षा जरूरी है। pic.twitter.com/L7zcCcPeei— santosh singh (@SantoshGaharwar) March 3, 2023
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने कहा कि ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में चीजों को देखने का वैज्ञानिक नजरिया रहा है। मगर आक्रमणों के कारण हमारी व्यवस्था नष्ट हो गयी और ज्ञान की हमारी संस्कृति विखंडित हो गई। हमारे पास परंपरागत रूप से जो है, उसके बारे में हर व्यक्ति के पास कम से कम मूलभूत जानकारी होनी चाहिए। इसे शिक्षा प्रणाली और लोगों के बीच आपसी बातचीत के जरिए हासिल किया जा सकता है।
ग्रंथों – परंपराओं की समीक्षा जरूरी
आरएसएस (RSS) के सरसंघचालक ने कहा कि हमारे यहां पहले ग्रंथ नहीं थे, मौखिक परंपरा से चलता आ रहा था। बाद में ग्रंथ इधर-उधर हो गए और बाद में कुछ स्वार्थी लोगों ने ग्रंथ में कुछ-कुछ घुसाया जो गलत है। उन ग्रंथों, परंपराओं के ज्ञान की एकबार फिर समीक्षा जरूरी है। मोहन भागवत के इस बयान को हिंदू धर्म में प्रचलित सदियों पुरानी जातिय व्यवस्था के खिलाफ जोड़ देखा जा रहा है।
भागवत ने कहा कि हमारे पास वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी था, जिसके आधार पर हम चले। लेकिन विदेशी आक्रमणों के कारण हमारी व्यवस्था नष्ट हो गई, हमारी ज्ञान की परंपरा खंडित हो गई। हम बहुत अस्थिर हो गए। इसलिए हर भारतीय को कम से कम कुछ बुनियादी ज्ञान होना चाहिए कि हमारी परंपरा में क्या है, जिसे शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ लोगों के बीच सामान्य बातचीत के जरिए हासिल किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर भारतीयों ने अपने पारंपरिक ज्ञान के आधार का पता लगाया और पाया कि वर्तमान समय के लिए क्या स्वीकार्य है, तो दुनिया की कई समस्याओं को हमारे समाधान से हल किया जा सकता है।
जाति भगवान ने नहीं पंडितों ने बनाई
मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) इससे पहले भी समाज में ऊंच-नीच पर सवाल खड़े कर चुके हैं। पिछले दिनों मुंबई में संत रविदास जी की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि समाज में कोई ऊंचा, कोई नीचा या कोई अलग कैसे हो गया? भगवान ने हमेशा बोला है कि मेरे लिए सभी एक हैं। लेकिन पंडितों ने श्रेणी बनाई, वो गलत था। भागवत के इस बयान पर ब्राह्मणों और साधु-संतों के एक तबके से तीखी प्रतिक्रिया भी आई थी।
मांसाहार नहीं होगा तो कत्लखाने खुद बंद हो जाएंगे
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने पानी को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि मांसाहार प्रोसेसिंग में अनाप-शनाप पानी खर्च होता है। मांसाहार नहीं होगा, तो कत्लखाने खुद ही बंद हो जाएंगे। इससे प्रदूषण भी होता है। हालांकि इसमें किसी का दोष नहीं, लेकिन इससे खुद को दूर करना पड़ेगा। यानी जिनकी इंडस्ट्री है, वो तो आखिर में मानेंगे। अगर मेरी मीट प्रोड्यूसिंग इंडस्ट्री है, तो मैं तभी मानूंगा, जब बनाया हुआ मीट खपेगा ही नहीं, ऐसा तब होगा जब कोई मांसाहार करेगा ही नहीं।