Electoral Bond Case : लोकसभा चुनाव 2024 में इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसको सबसे बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने विपक्ष के आरोपों पर पलटवार किया है। शाह ने विपक्ष से सवाल किया कि क्या विपक्षी दल भी इलेक्टोरल बांड के जरिये मिले चंदे को ‘जबरन वसूली’ कहेंगे।
Electoral Bond Case : लोकसभा चुनाव 2024 में इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) को लेकर सियासी घमासान छिड़ा हुआ है, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसको सबसे बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। इसी बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Union Home Minister Amit Shah) ने विपक्ष के आरोपों पर पलटवार किया है। शाह ने विपक्ष से सवाल किया कि क्या विपक्षी दल भी इलेक्टोरल बांड के जरिये मिले चंदे को ‘जबरन वसूली’ कहेंगे।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्टोरल बांड (Electoral Bond) असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने एसबीआई और चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बांड के जरिये मिले चंदे की जानकारी को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। वहीं, कोर्ट के फैसले के बाद इलेक्टोरल बांड एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कांग्रेस इलेक्टोरल बांड के मुद्दे पर लगातार सरकार पर निशाना साध रही है। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड की जो स्कीम है वो देश का सबसे बड़ा एक्सटॉर्शन रैकेट है। वहीं, राहुल गांधी के बयान पर अमित शाह ने पलटवार किया है।
विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए शाह (Amit Shah) ने कहा ‘उनकी पार्टियों को इलेक्टोरल बांड के माध्यम से भी चंदा मिला है। क्या वह भी जबरन वसूली है? राहुल गांधी को लोगों को बताना चाहिए। और सांसदों की संख्या के अनुपात में उन्हें जो चंदा मिला है, वह हमें मिलने वाले चंदे से भी ज्यादा है। उन्होंने कहा, ‘उनके पास कोई मुद्दा नहीं है, हमारे ऊपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है, इसलिए वे भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। वे सफल नहीं होंगे।’
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बांड योजना (Electoral Bond Scheme) को रद्द कर दिया था। कोर्ट का मानना था कि यह नागरिकों के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह योजना असंवैधानिक और मनमानी है और इससे राजनीतिक दलों और दानदाताओं के बीच बदले की व्यवस्था हो सकती है।