एक वर्ष में 24 चतुर्दशी होती है। मूलत: तीन चतुर्दशियों का महत्व है- अनंत, नरक और वैंकुंठ। अनंत चतुर्दशी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आती है। डोल ग्यारस के बाद अनंत चतुर्दशी और उसके बाद पूर्णिमा। इस बार अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर को मनाई जा रही है। इस तिथि पर गणेश विसर्जन की भी परंपरा है।
नई दिल्ली: एक वर्ष में 24 चतुर्दशी होती है। दरअसल, तीन चतुर्दशियों का महत्व है- अनंत, नरक और वैंकुंठ। अनंत चतुर्दशी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आती है। डोल ग्यारस के बाद अनंत चतुर्दशी और उसके बाद पूर्णिमा। इस बार अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर को मनाई जा रही है। इस तिथि पर गणेश विसर्जन की भी परंपरा है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत (विष्णु) की पूजा का विधान होता है। भगवान विष्णु के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है।
प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लेकर पूजा स्थल पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश पर अष्टदल कमल की तरह बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना करने के पश्चात एक धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र तैयार करें, इसमें चौदह गांठें लगी होनी चाहिए। इसे भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने रखकर भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।
मिष्ठान आदि का भोग लगाएं एवं अनंत भगवान का ध्यान करते हुए सूत्र धारण करें। यह डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। इस दिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करना बहुत उत्तम माना जाता है। भगवान विष्णु की कृपा के लिए श्री सत्यनारायण की कथा करना बहुत लाभकारी है।
अनंत संसार महासमुद्रेमग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्वह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।