गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के बाद से पूरे 10 दिन गणपति पूजा (Ganpati Puja) होती है। अधिकांश लोग अनंत चौदस या अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तक गणपति (Ganpati ) की स्थापना करते हैं और फिर विसर्जन करते हैं। जिस दिन बप्पा विसर्जित होते हैं वो दिन हरि को याद करने का दिन भी होता है। यानि उस दिन खासतौर से भगवान विष्णु की पूजा (Worship of Lord Vishnu) होती है।
नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के बाद से पूरे 10 दिन गणपति पूजा (Ganpati Puja) होती है। अधिकांश लोग अनंत चौदस या अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) तक गणपति (Ganpati ) की स्थापना करते हैं और फिर विसर्जन करते हैं। जिस दिन बप्पा विसर्जित होते हैं वो दिन हरि को याद करने का दिन भी होता है। यानि उस दिन खासतौर से भगवान विष्णु की पूजा (Worship of Lord Vishnu) होती है। पूजा करने वाले स्त्री और पुरुष हाथ में एक खास डोरी बांधते हैं। इस डोरी को अनंत डोर (Anant Door ) भी कहा जाता है। इस डोर की खासियत ये होती है कि इस पर 14 गाठें बंधी होती हैं, जिनका अपना अलग महत्व होता है। क्या है वो खास महत्व चलिए जानते हैं?
14 गांठ का रहस्य
अनंत चौदस पर हरिपूजन की परंपरा है, जिसके बाद 14 गांठ वाला एक धागा हाथ में बांधा जाता है। वैसे ये पूजन किसी पर्व की तरह नहीं किया जाता। जो लोग इस परंपरा को मानते चले आ रहे हैं। वह अपने घरों पर ये पूजा करते हैं और अमृत डोर कलाई पर बांधते हैं। डोर में बंधी चौदह गांठ अलग-अलग लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो पूरे चौदह साल तक सभी नियम से पूजा पाठ करके चौदह गांठ वाला सूत्र बांधता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
अनंत डोर पहनने के नियम
इस डोर को पहनने के नियम भी अलग हैं। आमतौर पर पूजा के बाद जो रक्षा सूत्र हाथ पर बांधा जाता है। उससे इतर ये डोर सिर्फ रेशम से ही बनती है। जिसे पुरुष अपने दाहिने हाथ पर बांधते हैं और महिलाएं बाएं हाथ पर बांधती हैं। इस डोर को पूजा के बाद ही बांधा जाता है। अनंत डोर बांधने वाले अधिकांशतः दिन भर उपवास भी रखते हैं।
अनंत चौदस पूजन की पौराणिक मान्यता
इस उपवास और पूजन को करने का चलन महाभारत के समय से माना जा रहा है। महाभारत में कौरव पांडवों के बीच द्यूत क्रीड़ा हुई। जिसमें पांडव अपना सब कुछ हार गए। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने उन्हें उस वक्त अनंत चौदस का उपवास रख अनंत डोर धारण करने का सुझाव दिया। मान्यता है कि उसके बाद से ही अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा जाने लगा। जिसकी महिमा से पांडवों को सब कुछ वापस मिला।