रामपुर: कभी चोरी की किताबों और स्टेचू बरामद करने लिए छापेमारी तो कभी सेस के बकाया में भवनों को सील किया जाना। कभी चक रोडों पर जौहर विवि के कब्जे तो कभी दलितों की जमीनों की वापसी…। मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी पर कार्रवाई, पहली दफा नहीं हो रही। दरअसल, संगे-बुनियाद से पहले ही यह यूनिवर्सिटी विवादों में घिर गई थी।
मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी सपा सांसद मोहम्मद आजम खां का ड्रीम प्रोजेक्ट था। जिसकी कोशिशें वर्ष 2004 में शुरू हुईं। तब सूबे में सपा की सरकार थी। मुलायम सिंह यादव उस वक्त मुख्यमंत्री थे और मोहम्मद आजम खां नगर विकास मंत्री। तब सदन में जौहर विवि का बिल पेश किया गया। उस समय भी विपक्ष का बहुत विरोध झेलना पड़ा था लेकिन, बिल को मंजूरी मिली और इसे राजभवन भेज दिया गया।
पहले ही चरण में राजभवन ने इस पर आपत्ति लगा दी। जबरदस्त विरोध हुआ तो अल्प संशोधन के लिए फिर सदन में विधेयक लाया गया। इसके बाद जमीन की खरीददारी शुरू हुई तो गांव वालों का विरोध। इस सबके बीच 18 सितंबर 2006 में यूनिवर्सिटी की संग-ए-बुनियाद रखी गई।
इसके बाद सूबे में सत्ता बदली, मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो यूनिवर्सिटी की दीवार पर बुलडोजर चलवा दिया गया। मौलाना मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर खूब सियासत हुई। वर्ष 2012 में जब सूबे में दोबारा सपा सत्ता में आयी तो जौहर यूनिवर्सिटी को शासन की विधिवत अनुमति मिली और 18 सितंबर 2012 को इस तालीम के इदारे का इफ्तेताह हुआ। मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई। वक्त के साथ-साथ विवादों से रिश्ता और गहराता चला गया।