नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) ने बीते बुधवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा (Soban Singh Jeena University, Almora) के कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति निरस्त को निरस्त कर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यूजीसी (UGC) की नियमावली के अनुसार वाइस चांसलर नियुक्त होने के लिए 10 साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है, जबकि एनएस भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है।
अल्मोड़ा । नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) ने बीते बुधवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा (Soban Singh Jeena University, Almora) के कुलपति प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति निरस्त को निरस्त कर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यूजीसी (UGC) की नियमावली के अनुसार वाइस चांसलर नियुक्त होने के लिए 10 साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है, जबकि प्रोफेसर एनएस भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है। बाद में प्रोफेसर भंडारी उत्तराखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (Uttarakhand Public Service Commission) के मेंबर नियुक्त हो गए थे।
अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो भंडारी की नियुक्ति निरस्त, हाईकोर्ट ने दिया आदेशकोर्ट ने मामले को सुनने के बाद उनकी नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त कर दिया।
नैनीताल हाई कोर्ट ने सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के पहले कुलपति प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर की। कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद उनकी नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि उन्होंने यूजीसी की नियमावली के अनुसार दस साल को प्रोफेसरशिप नही की है।
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान (Chief Justice Justice RS Chauhan) व न्यायमूर्ति एनएस धानिक (Justice NS Dhanik) की खंडपीठ में देहरादून निवासी राज्य आंदोलनकारी रवींद्र जुगरान की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा (Soban Singh Jeena University, Almora) के कुलपति पद पर प्रो एनएस भंडारी की नियुक्ति यूजीसी के नियमावली को दरकिनार कर की गयी है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि यूजीसी (UGC) की नियमावली के अनुसार वाइस चांसलर नियुक्त होने के लिए दस साल की प्रोफेसरशिप होनी आवश्यक है, जबकि प्रोफेसर एनएस भंडारी ने करीब आठ साल की प्रोफेसरशिप की है। बाद में प्रोफेसर भंडारी उत्तराखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (Uttarakhand Public Service Commission) के मेंबर नियुक्त हो गए थे। उस दौरान की सेवा उनकी प्रोफेसरशिप में नहीं जोड़ा जा सकता है। इसलिए उनकी नियुक्ति अवैध है। इसके साथ ही उनको पद से हटाये जाने का आदेश दिया।