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Birthday Special: Photographer बनना चाहतें थे प्राण, ऐसे बन गए बॉलीवुड के सबसे बड़े विलेन

By आराधना शर्मा 
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नई दिल्ली: बॉलीवुड के लीजेंडरी दिवंगत एक्टर प्राण हिंदी सिनेमा के उन कलाकारों में शामिल हैं जिन्होंने निगेटिव और पॉजीटिव दोनों तरह की भूमिका निभाकर दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई थी।

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आपको बता दें प्राण की आज 101 वीं बर्थ एनवर्सरी है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के ऐसे कलाकार थे जिन्हें बतौर विलेन भी उतनी ही पॉपुलरिटी मिली जितने की एक हीरो के तौर पर किसी को दर्शक द्वारा पसंद किया जाता है। वह अच्छे- अच्छे हीरो पर हावी रहते थे। उनकी एक्टिंग के लोग दीवाने थे।

प्राण ने हिंदी सिनेमा में 350 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय किया। मधुमति, जिस देस में गंगा बहती है, पूरब और पश्चिम, उपकार, शहीद, आंसू बन गए फूल, जॉनी मेरा नाम, जंजीर, डॉन, अमर अकबर एंथनी जैसी कई हिट फिल्मों में प्राण ने अपनी अदाकारी से हर किसी को प्रभावित किया।  प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को पुरानी दिल्ली में हुआ था। उनका पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था. प्राण के पिता एक सरकारी सिविल इंजीनियर थे।

फोटोग्राफर बनना चाहतें थे प्राण 

प्राण काफी संपन्न परिवार से ताल्लुक रखते थे लेकिन उनका मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। वहीं उनके पिता प्राण को एक इंजीनियर बनाना चाहते थे। मैट्रिक पास करने के बाद प्राण ने पढ़ाई छोड़ दी और उनका मन फोटोग्राफी में लग गया। लाहौर में उन्होने फोटोग्राफी शुरू कर दी। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने शिमला में रामलीला में सीता का किरदार निभाया और यही से उनकी रूचि एक्टिंग में हो गई।

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प्राण फिल्मों में काम करना चाहते थे लेकिन उनके पिता के साथ-साथ उनका पूरा परिवार उनकी एक्टिंग के खिलाफ था। वो अपने पिता से इतना डर गए थे कि अपने पहले ब्रेक के बारे में भी उन्होंने किसी को नहीं बताया। जब साल 1940 में उन्हे पंजाबी फिल्म ‘यमला जट ’ में काम करने का मौका मिला तब हिम्मत करके उन्होंने अपनी एक्टिंग के बारे में पिता को बताया।

धीरे-धीरे एक्टिंग के लिए उनका प्यार इतना बढ़ गया कि उन्होंने सिर्फ 1 रुपये में फिल्म ‘बॉबी’ साइन की थी. हिंदी फिल्मों में आने से पहले उन्होनें कई पंजाबी फिल्मों में काम किया जिसमें वे बतौर हीरो नजर आए. विभाजन के बाद अचानक हालात बदल गए और वे मुंबई चले आए. इस दौरान हिंदी फिल्मों में काम करने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था. लेकिन यहां उनकी मदद की मशहूर कहानीकार सआदत हसन मंटो ने. मंटो ने उन्हें एक फिल्म निर्देशक से मिलवाया. इसके बाद उन्हें हिंदी फिल्मों में मौका मिला.

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