तेजस्वी यादव ने आगे कहा, अगर एनडीए सरकार 65 फीसदी आरक्षण सीमा का समर्थन नहीं करती है तो इसका सीधा अर्थ है कि 𝟔𝟓% आरक्षण के अनुसार सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्गों को 𝟏𝟔% कम नौकरियां मिलेंगी। इसके लिए नीतीश सरकार दोषी है। जदयू के बल पर यह सरकार चल रही है लेकिन अब मुख्यमंत्री जी सहित पार्टी में नैतिक और वैचारिक साहस नहीं कि बाबा साहेब के आरक्षण विरोधी केंद्र सरकार को इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने पर मजबूर कर सके।
पटना। बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और राजद नेता तेजस्वी यादव ने आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि, हमारी 17 महीनों की सरकार ने बिहार में जाति आधारित सर्वे करवा कर 2 अक्टूबर 2023 को जाति गणना के सर्वे को प्रकाशित कर 9 नवंबर 2023 मेरे जन्मदिवस के अवसर पर आरक्षण की सीमा 65 फीसदी तक बढ़ाकर उसे तत्काल प्रभाव से सरकारी नियुक्तियों में लागू कराने का निर्णय लिया गया।
उसके बाद हमने इसे संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल कराने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा। लेकिन दलितों-पिछड़ों-अतिपिछाड़ों और आदिवासियों के आरक्षण की धुर विरोधी बीजेपी सरकार ने एक साल बाद भी अभी तक इसे स्वीकृत नहीं किया है। 65 फीसदी आरक्षण सीमा को संविधान की 9वीं अनुसूची में नहीं डालने से आरक्षित वर्गों यथा दलितों-पिछड़ों-अतिपिछड़ों और आदिवासियों को लाखों पदों पर नौकरियों का नुकसान हो रहा है।
तेजस्वी यादव ने आगे कहा, अगर एनडीए सरकार 65 फीसदी आरक्षण सीमा का समर्थन नहीं करती है तो इसका सीधा अर्थ है कि 𝟔𝟓% आरक्षण के अनुसार सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्गों को 𝟏𝟔% कम नौकरियां मिलेंगी। इसके लिए नीतीश सरकार दोषी है। जदयू के बल पर यह सरकार चल रही है लेकिन अब मुख्यमंत्री जी सहित पार्टी में नैतिक और वैचारिक साहस नहीं कि बाबा साहेब के आरक्षण विरोधी केंद्र सरकार को इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने पर मजबूर कर सके।
बीजेपी के लोगों ने पिछले दरवाज़े से 65 फीसदी आरक्षण सीमा को निरस्त कराया। अब हमारी मांग है कि बिहार सरकार पुन: एक नया विधेयक लाकर इसकी सीमा को 𝟖𝟓% (𝟕𝟓+ 𝟏𝟎%𝐄𝐖𝐒) तक बढ़ाये और इसे 𝟗वीं अनुसूची में सम्मिलित करने का प्रस्ताव एनडीए की केंद्र सरकार को भेंजे।