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विश्व में शांति और मानवीय विकास के लिए सक्षम और सशक्त भारत का निर्माण जरूरी : शिव प्रताप शुक्ल

देश के संतों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने आज यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में एक स्वर से सशक्त, सनातन और महान लोकतांत्रिक भारत को 2047 तक हर हाल में विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया। काशी में इस अद्भुत और अत्यंत गंभीर विमर्श का आयोजन अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्री गंगा महासभा, श्री काशी विद्वतपरिषद और भारत संस्कृति न्यास ने संयुक्त रूप से किया था

By अनूप कुमार 
Updated Date

वाराणसी। देश के संतों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने आज यहां रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में एक स्वर से सशक्त, सनातन और महान लोकतांत्रिक भारत को 2047 तक हर हाल में विश्वगुरु बनाने का संकल्प लिया। काशी में इस अद्भुत और अत्यंत गंभीर विमर्श का आयोजन अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, श्री गंगा महासभा, श्री काशी विद्वतपरिषद और भारत संस्कृति न्यास ने संयुक्त रूप से किया था। कार्यक्रम का विषय प्रस्ताव संघ के प्रांत प्रचारक रमेश जी ने किया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने सक्षम और सशक्त भारत के निर्माण में सभी को जुटने की अपील करते हुए कहा कि श्री काशी जी की इस पवित्र भूमि पर इस रुद्राक्ष कन्वेंशन केंद्र में आप सभी विद्वतजनों एवं संत महात्माओं का एक साथ संवाद के साथ ही दर्शन लाभ प्राप्त करने का यह शुभ अवसर मुझे प्राप्त हो रहा है। इसके लिए में श्रद्धेय स्वामी जीतेंद्रानंद जी सरस्वती के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं कि उन्होंने इतने गंभीर और महत्वपूर्ण विमर्श में मुझे यह सौभाग्य प्रदान किया है।

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भारत के सशक्त और महान सनातन लोकमत से विश्व को उम्मीद : शिव प्रताप शुक्ल
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने  कहा कि संवाद हमारी सनातन संस्कृति का आधार है। संवाद से ही सृष्टि के सभी रहस्य जानने योग्य बनते हैं। हमारे सभी ग्रंथ केवल संवाद ही हैं। श्रुति, उपनिषद, स्मृति, पुराण , रामायण महाभारत आदि सभी ग्रंथ संवाद ही हैं। इसी संवाद में सभी समाधान भी हैं और दिशा निर्देश भी। जीवन के सूत्र भी हैं और राजसत्ता तथा राजधर्म के भी सूत्र हैं। यह संयोग नहीं, बल्कि सनातन का मूल प्रयोग आज यहां इस सभागार में आयोजित इस संवाद के माध्यम से होता हुआ दिख रहा है। यह भारत की संत और ज्ञान परंपरा की विरासत भी है। इसका केंद्र सदैव से काशी ही रही है और आज के इस संवाद के संयोग ने इसे और भी प्रासंगिक बना दिया है। सनातन की चार प्रमुख संस्थाओं ने इसमें एक साथ सहभागिता कर इस को और भी महत्ता और गरिमा प्रदान की है जिससे अखंड, शाश्वत, सनातन विश्वगुरु भारत की दमकती तस्वीर का रेखांकन हम कर पा रहे हैं। ऐसे महान भारत का चित्र जिसको रचने में भारत का नेतृत्व अपनी पूरी शक्ति और आस्थावान संकल्प के साथ जुटा हुआ है। श्री शुक्ल ने कहा कि यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि ऐसे समय में जब विश्व के एक बड़े हिस्से में भयानक युद्ध की विभीषिका से मानवता त्रस्त है, हमारा भारत वर्ष अपने संवेदनशील मानवीय एवं सनातन मूल्यों के साथ लोकतंत्र का उत्सव मना रहा है।
इस परिवेश में भारतीय मूल्यों के रक्षक और भारत निर्माण की सनातन संस्कृति के वाहक के रूप में सक्रिय अखिल भारतीय संत समिति, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, अखिल भारतीय गंगा महासभा और श्री काशी विद्वत परिषद ने आज इस गंभीर विमर्श का आयोजन कर विश्व को एक सार्थक, स्वेदनशील और लोकतांत्रिक प्रणाली को सक्षम एवं राष्ट्रोन्मुख विकास से जोड़ने का अद्भुत प्रयास किया है। रुद्राक्ष के इस विशाल सभागार से जो भी शब्द तत्व निकलेगा उसका प्रभाव निश्चित रूप से भारत और विश्व को एक दिशा देने वाला होगा , ऐसा मुझे भरोसा है। यह और भी सुखद है कि यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत अपने लिए सक्षम और सशक्त नेतृत्व के लिए एक महान यज्ञ कर रहा है। भारत को अपने इस महान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व है। इस गर्व ने ही विगत वर्षों में भारत को आत्मनिर्भरता , आर्थिक संपन्नता , सामरिक सुदृढ़ता और विश्व को सांस्कृतिक मानवीय नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता दी है। ऐसे में हम सभी भारतीयों का यह कर्तव्य बन जाता है कि अपनी इसी सनातन संस्कृति की अवधारणा को और अधिक सुदृढ़ कर अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों के साथ भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने में अपना योगदान अवश्य दें।

आज इस सभागार में उपस्थित हम सभी निश्चित रूप से अपने महान सनातन मानव मूल्यों और अपनी महान लोकतांत्रिक विरासत के ध्वजवाहक और दूत के रूप में यहां एकत्र हुए हैं जिसके माध्यम से सामान्य जन तक इस आयोजन के संकल्प शब्द पहुंचाना आवश्यक है। भारत की इस विकास यात्रा को और गति मिले , इसके लिए जो भी हम कर सकते हैं, अवश्य करना होगा। विश्व को भी युद्ध जैसी विभीषिका से मुक्त करने की क्षमता केवल भारत के पास ही है, इसीलिए दुनिया की दृष्टि हमारी ओर है। दुनिया के कल्याण का पथ केवल भारत की महान सनातन लोकतांत्रिक परंपरा में ही निहित है। आज काशी की इस पावन भूमि से उठने वाले प्रत्येक स्वर की प्रतीक्षा पूरा भारत तो कर ही रहा है, विश्व की निगाहें भी काशी की ओर लगी हैं। भारत की शक्ति, भारत का सक्षम नेतृत्व और भारत की द्रुदगामी विकास यात्रा में केवल भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का कल्याण भी निहित है। यह संयोग है कि स्वामी जीतेंद्रानंद जी ने एक प्रकार से भारत के सनातन स्वर को एक सघन संवाद के माध्यम से  इस सभागार से प्रसारित करने का यह अनुपम प्रयोग किया है और मुझे भी इसका सहभागी होने का गौरव हासिल हो रहा है। इस आयोजन का प्रभाव निश्चित रूप से भारत के लोकतंत्र के महायज्ञ को तो दिशा देगा ही, विश्वकल्याण का भी मार्ग प्रशस्त करेगा और भारत पुनः एक सशक्त और सक्षम नेतृत्व के साथ विश्वगुरु के पथ पर अग्रसर होगा। हमारे नेतृत्व और नायक की 2047 के विकसित भारत की परिकल्पना को नई गति मिलेगी।


सक्षम राष्ट्र के निर्माण के लिए सभी सहभागी बनें : लक्ष्मणाचार्य
सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि यह सभागार आज ऐसे क्षण का साक्षी बन रहा है जब भारत अपनी महान संस्कृति और सनातन परंपरा के साथ ही अपनी लोकतांत्रिक मान्यताओं के लिए निरंतर विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। देश अपने लिए अच्छे शासन की कामना के साथ अपने प्रतिनिधियों के चयन में लगा है। अपनी स्वाधीनता के अमृत काल में राष्ट्र निरंतर नए नए कीर्तिमान गढ़ रहा है। सामाजिक, आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक क्षेत्र से लेकर शिक्षा और विज्ञान एवं तकनीक में विश्व को नए मानक उपलब्ध करा रहा है। ऐसी घड़ी में स्वामी जी ने इस विमर्श का आयोजन कर अद्भुत कार्य किया है। यह समय कितना महत्वपूर्ण है इसको आज सभी को अवश्य समझना चाहिए। इस सभागार में और इस मंच पर अनेक ऐसे विद्वत वरेण्य उपस्थित हैं जिनका अत्यंत गहन चिंतन और कार्य इस विषय पर हुआ है और आगे भी होना है। यह आयोजन ऐसे स्थल पर हो रहा है जिसका प्रभाव केवल भारत पर ही नहीं बल्कि विश्व पर भी अवश्य दिखेगा। सक्षम, शक्तिशाली और प्रतिभावान राष्ट्र के निर्माण में जो लोग लगे हैं उनकी अपनी भूमिका तो है ही, राष्ट्र के लोग जब इसमें अपनी भूमिका के साथ सम्मिलित होते हैं तो यह और भी अलग रूप से प्रभाव उपन्न करता है। इसलिए इस विमर्श के संदेश की बहुत महत्ता है।
भारत आज जिस रूप में विश्व के समक्ष उपस्थित है उसमे हमारे नेतृत्व करने वाले प्रत्येक चरित्र का योगदान है। नेतृत्व से ही सब कुछ हासिल होता है। इसलिए नेतृत्व सक्षम और दिशा वान होना चाहिए । लोकतंत्र में भारत के प्रत्येक व्यक्ति को इसके लिए संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं। इसलिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है की राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होकर अपने नायक का चयन करे। यहां उपस्थित सभी लोग इस बात से अवगत हैं कि भारत के बाहर विश्व के अनेक देशों के हालात बहुत अच्छे नहीं है। लगभग आधी दुनिया अत्यंत उथल पुथल और अव्यवस्था की शिकार है। अनेक राष्ट्र युद्धों की विभीषिका झेल रहे हैं। अनेक राष्ट्र घनघोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। ऐसे वैश्विक परिवेश में सभी की दृष्टि भारत की ओर है। भारत की जनता और भारत के नेतृत्व से सभी को बहुत उम्मीदें हैं। यह स्थिति अत्यंत संवेदनशील है। यह समय एक प्रकार से हमारी सनातन परंपराओं की परीक्षा का भी है क्योंकि हमें अपने प्राचीन उस स्थान और लक्ष्य को भी हासिल करना है जिससे हमें विश्वगुरु का वह स्थान प्राप्त हो सके जो हमेशा से हमारे पास रहा है। इसके लिए हम सभी को लगना होगा। अति संवेदनशील अवस्था से गुजर रही दुनिया के लिए इसकी राह दिखानी होगी। मानव मूल्यों और भावनाओं के संरक्षण के लिए आगे आना होगा।

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सनातन संस्कृति भारत की आत्मा, संत इसके संरक्षण के लिए हर बलिदान देंगे : स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती
कार्यक्रम के संयोजक और शिल्पी स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने बहुत विस्तार से सनातन के समक्ष खड़ी चुनौतियों पर चर्चा करते हुए भारत के वर्तमान परिवेश पर प्रकाश डाला। स्वामी जी ने कहा कि सनातन संस्कृति भारत की आत्मा, संत इसके संरक्षण के लिए हर बलिदान देंगे। इतिहास इस बात का गवाह है कि भारत की संप्रभुता और सनातन को जब भी किसी ने संकट में डालने की कोशिश की है , भारत की संत परंपरा ने उसका डट कर मुकाबला भी किया है और सनातन राष्ट्र को सुरक्षित रखने का कार्य किया है।

कार्यक्रम में श्री शिवप्रताप शुक्ल ,  राज्यपाल, हिमाचल प्रदेश, श्री लक्ष्मण आचार्य,  राज्यपाल, सिक्किम , स्वामी जीतेन्द्रानन्द सरस्वती जी, महामन्त्री अखिल भारतीय सन्त समिति , स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ,  जगद्‌गुरु शंकराचार्य, सुमेरु पीठ, काशी , स्वामी शंकर पुरी जी महन्त मन्दिर,अन्नपूर्णा, महामण्डलेश्वर सन्तोष दास  सतुआ बाबा, प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी  अध्यक्ष, श्रीकाशी विद्वत् परिषद् , महामण्डलेश्वर प्रखर  , श्रीमहन्त यमुनापुरी , श्रीमहन्त बालकदास , पातालपुरी मठ  स्वामी विमलदेव आश्रम , अध्यक्ष, दण्डी संन्यासी प्रबन्धन समिति,पद्मश्री प्रो० नागेन्द्र पाण्डेय ,पद्मश्री प्रो. के. के. त्रिपाठी  , पद्मश्री पण्डित शिवनाथ मिश्र  , पद्मश्री श्री रजनीकान्त , पद्मश्री चन्द्रशेखर सिंह ,श्री जगजीतन पाण्डेय , अखिल भारतीय धर्मसंघ ,क्षेत्रप्रचारक  ,प्रान्तप्रचारक  सहित हजारों की संख्या में संत और विद्वतजन उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत रामेश्वर मठ के वैदिक छात्र, राष्ट्र सूक्त का पाठ कर किए। श्री काशी विश्वनाथ धाम के पण्डित श्रीकान्त मिश्र ने पौराणिक मंगलाचरण किया। कार्यक्रम का प्रस्तावना – डॉ० शुकदेव त्रिपाठी ने प्रस्तुत किया।

सञ्चालन  प्रो० रामनारायण द्विवेदी जी और धन्यवाद ज्ञापन आचार्य गोविन्द शर्मा जी ने किया। इससे पूर्व बृजेश सिंह , पूर्व सदस्य विधान परिषद , संजय तिवारी , अध्यक्ष, भारत संस्कृति न्यास, प्रो. विनय पाण्डेय , संगठन मन्त्री, श्रीकाशी विद्वत्परिषद्श्रीमती गीता शास्त्री  , आनन्द पाण्डेय , कन्हैया सिंह  , शशिभूषण , सच्चिदानन्द सिंह जी, विपिन सेठ जी , दीपक गिरि , साहिल सोनकर , शशि राय , पीयूष मिश्रा , आदेश भट्ट  , एड तुषार गोस्वामी , विनोद सिंह  , उमाकान्त शर्मा ,श्रीमती उषा सिंह परिहार  , श्रीमती पूनम पाण्डेय  , तारा प्रसाद कश्यप  , धीरेन्द्र सिंह  , प्रो. एम. के. श्रीवास्तव   पीयूष मिश्रा  , देवेश अड़ीचवाल  आशीष साहू जी और सतीश जैन  ने माल्यार्पण कर अतिथियों का स्वागत किया।

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