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Chandrayaan-3 : चांद के चौथे ऑर्बिट में चंद्रयान हुआ दाखिल, जानें मिशन के लिए क्यूं अहम है 17 अगस्त?

इसरो (ISRO) का चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन मंजिल के और करीब पहुंच गया है। इसरो (ISRO)  ने सोमवार को बताया कि चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने सफलतापूर्वक चांद की कक्षा के एक और वृत्ताकार चरण को पूरा कर लिया है और अब वह चांद के और करीब वाली कक्षा में पहुंच गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) अब चांद के चौथे ऑर्बिट में प्रवेश कर गया है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। इसरो (ISRO) का चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) मिशन मंजिल के और करीब पहुंच गया है। इसरो (ISRO)  ने सोमवार को बताया कि चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने सफलतापूर्वक चांद की कक्षा के एक और वृत्ताकार चरण को पूरा कर लिया है और अब वह चांद के और करीब वाली कक्षा में पहुंच गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) अब चांद के चौथे ऑर्बिट में प्रवेश कर गया है।

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चांद के और करीब पहुंचा चंद्रयान-3

इसरो ने बताया कि 14 अगस्त की सुबह करीब पौने बारह बजे चंद्रयान-3 के थ्रस्टर्स को चालू किया गया था, जिसकी मदद से चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने सफलतापूर्वक कक्षा बदली। पांच अगस्त को चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने पहली बार चांद की कक्षा में प्रवेश किया था और उसके बाद से तीन बार कक्षा में बदलाव कर चांद के करीब आ चुका है। चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) 1900 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चांद से 150 किलोमीटर दूर कक्षा में यात्रा कर रहा है। चंद्रयान का ऑर्बिट सर्कुलाइजेशन चरण चल रहा है और चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने अंडाकार कक्षा से गोलाकार कक्षा में आना शुरू हो गया है।

17 अगस्त के दिन चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल को लैंडर से अलग किया जाएगा

16 अगस्त को चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) एक और कक्षा कम करके चांद के और करीब आएगा। वहीं 17 अगस्त का दिन मिशन के लिए अहम होगा क्योंकि इस दिन चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के प्रोपल्शन मॉड्यूल को लैंडर से अलग किया जाएगा। इसके बाद 23 अगस्त को चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3)  को चांद की सतह पर लैंड करना है, जिस पर पूरी दुनिया की निगाह होगी।

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चंद्रयान-3 14 दिन तक करेगा प्रयोग
चंद्रयान-3 मिशन (Chandrayaan-3 Mission) में लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल शामिल हैं। लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेंगे और 14 दिनों तक प्रयोग करेंगे। वहीं प्रोपल्शन मॉड्लूय चांद की कक्षा में ही रहकर चांद की सतह से आने वाले रेडिएशन्स का अध्ययन करेगा। इस मिशन के जरिए इसरो चांद की सतह पर पानी का पता लगाएगा और यह भी जानेगा कि चांद की सतह पर भूकंप कैसे आते हैं।

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