सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को निरस्त कर दिया जिसके जरिए मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के कानून पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
जबलपुर : सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को निरस्त कर दिया जिसके जरिए मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के कानून पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इसके पूर्व हाई कोर्ट से भी यह याचिका निरस्त हो चुकी है।
लिहाजा, अब यह सरकार पर है कि प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देना है या नहीं। हाई कोर्ट से जनहित याचिका निरस्त होने के बाद यूथ फॉर इक्वालिटी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा दो सितंबर 2021 को आदेश जारी कर प्रदेश में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था। इसी की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी इसके पूर्व हाई कोर्ट ने चार अगस्त 2023 को अंतरिम आदेश के तहत जीएडी के उक्त आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने जीएडी सहित अन्य विभागों को अभिमत जारी कर प्रदेश में 83:13 का फार्मूला लागू कर दिया था। विज्ञापनों एवं समस्त विभागों की भर्तियों की अधिसूचनाओं में इसी याचिका का उल्लेख किया गया। इसी बीच ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की गई थीं।
हाई कोर्ट ने 28 जनवरी, 2025 को जनहित याचिका निरस्त कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट में कैविएट लगाने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व वरुण सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने न्यायाधीश एम. सुंद्रेश एवं राजेश बिंदल की युगलपीठ को बताया कि यूथ फार इक्वालिटी एक राजनीतिक दल है और सागर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डा. गिरीश कुमार सिंह की ओर से यह याचिका दायर की गई है। इसी संस्था की एक अन्य याचिका हाई कोर्ट में लंबित है। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अनुमति याचिका निरस्त कर दी।