मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, भारत के उपराष्ट्रपति पद पर डॉ. राधाकृष्णन जी, डॉ. शंकर दयाल शर्मा जी, जस्टिस हिदायतुल्लाह जी, के.आर. नारायणन जी जैसे कई महान लोग बैठ चुके हैं और काम कर चुके हैं। 1952 से अब तक किसी उपराष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के आर्टिकल 67 के अंतर्गत 'Resolution for removal of vice president' नहीं लाया गया।
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेता प्रेस कॉफ्रेंस कर रहे हैं। इस प्रेस कॉफ्रेंस को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सभापति पर पक्षपातपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाया और अविश्वास प्रस्ताव लाने की वजह भी बताई। उन्होंने कहा, उपराष्ट्रपति लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ होता है। इस कुर्सी पर कई लोग बैठे और बहुत काम किया।
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, भारत के उपराष्ट्रपति पद पर डॉ. राधाकृष्णन जी, डॉ. शंकर दयाल शर्मा जी, जस्टिस हिदायतुल्लाह जी, के.आर. नारायणन जी जैसे कई महान लोग बैठ चुके हैं और काम कर चुके हैं। 1952 से अब तक किसी उपराष्ट्रपति के खिलाफ संविधान के आर्टिकल 67 के अंतर्गत ‘Resolution for removal of vice president’ नहीं लाया गया। क्योंकि वे हमेशा निष्पक्ष रहे और पूरी तरह राजनीति से परे रहे। उन लोगों ने कभी राजनीति नहीं की और नियमों के तहत सदन चलाते रहे, लेकिन आज सदन में नियमों को छोड़कर राजनीति की जा रही है।
साथ ही कहा, बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने संविधान के ड्राफ्ट में ये साफ लिखा था- Vice-President of India shall be the ex-officio Chairman of the Council of States. भारत के पहले उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 16 मई 1952 को कहा था कि ‘मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं। मतलब, मैं हर पार्टी से जुड़ा हुआ हूं।’ लेकिन हमें अफसोस है कि आज चेयरमैन के द्वारा हो रहे पक्षपात ने विपक्षी पार्टियों को उनके खिलाफ ये प्रस्ताव लाने पर मजबूर कर दिया।
पिछले 3 वर्षों में उनका आचरण, उनके पद की गरिमा के विपरीत रहा है। कभी वे सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़ने लगते हैं, तो कभी खुद को RSS का एकलव्य बताने लगते हैं। इस तरह की बयानबाजी उनके पद को शोभा नहीं देती। सभापति जी सदन के अंदर प्रतिपक्ष के नेताओं को विरोधियों की तरह देखते हैं। सीनियर-जूनियर कोई भी हो, वे विपक्षी नेताओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर उन्हें अपमानित भी करते हैं।
मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, सदन में लंबा अनुभव रखने वाले कई नेता हैं। सदन में जो सदस्य हैं, वे डॉक्टर, प्रोफेसर, पत्रकार समेत अनेक पेशे से जुड़े रहे हैं और कई सदस्य मंत्री भी रह चुके हैं। सभापति सदन में हेडमास्टर की तरह सदस्यों की स्कूलिंग करते हैं। उनको प्रवचन सुनाते हैं। यदि विपक्ष के सांसद सदन में 5 मिनट बोलते हैं, तो 10 मिनट खुद सभापति बोलते हैं। सदन में विपक्ष के सांसदों को बोलने से रोका जाता है। सभापति की निष्ठा संविधान और संवैधानिक परंपराओं की जगह सत्ता पक्ष के लिए है।
उन्होंने आगे कहा, सभापति अपने अगले प्रमोशन के लिए सरकार के प्रवक्ता बनकर काम कर रहे हैं। मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं है कि: ‘The biggest disruptor in Rajya Sabha is the Chairman himself’ – सदन अगर बाधित होता है तो उसके सबसे बड़े कारण सभापति हैं। सभापति दूसरों को सबक सिखाते हैं और स्वयं बार-बार व्यवधान उत्पन्न करते हैं। यह देखा जा सकता है कि सदन बंद करने की कोशिश सत्ता पक्ष और सभापति की ओर से ज्यादा होती है।