हिंदू धर्म में भगवान हनुमान के बारे कहा जाता है कि वे अतुलित बल के स्वामी है।भगवान हनुमान को उनके भक्त हनुमन्त लाल भी कहकर उनकी भक्ति करते हैं। जयोतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार के दिन को हनुमान का दिन माना जाता है। हालांकि हनुमान जी का दिन शनिवार को भी माना जाता है।
नई दिल्ली: हिंदू धर्म में भगवान हनुमान के बारे कहा जाता है कि वे अतुलित बल के स्वामी है।भगवान हनुमान को उनके भक्त हनुमन्त लाल भी कहकर उनकी भक्ति करते हैं। जयोतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार के दिन को हनुमान का दिन माना जाता है। हालांकि हनुमान जी का दिन शनिवार को भी माना जाता है। संतों का ऐसा कहना है कि भक्तों पर बहुत जल्दी कृपा बरसाते हैं। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि भक्तों के संम्मान की रक्षा के लिए बरंगबली जरा सा भी देर नहीं करते। हनुमान जी को लाल रंग बहुत ही प्रिय है। मंगलवार को भक्त गण हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उनकों सिंदूर चोला भी चढ़ाते हैं। मंगलवार को हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी प्रिय वस्तुएं चढ़ाते हैं जैसे सिंदूर, चमेली का तेल और चोला आदि चढ़ाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन चीजों को मंगलवार को चढ़ाने से हनुमान जी प्रसन्न होकर भक्तों के संकट दूर करते हैं और सभी मनोरथ को पूर्ण करते हैं।
मंगलवार या शनिवार को दिन हनुमान जी की प्रतिमा को चोला चढ़ाते हैं। हनुमानजी की कृपा प्राप्त करने के लिए मंगलवार को तथा शनि महाराज की साढ़े साती, अढैया, दशा, अंतरदशा में कष्ट कम करने के लिए शनिवार को चोला चढ़ाया जाता है।
सिंदूर ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक
विशेष रूप से मंगलवार के दिन हनुमान जी को सिंदूर लगाने का रिवाज है। इस दिन उनकी प्रतिमा को सबसे गंगाजल से धोकर उनकी पूजा अर्चना करें और फिर मंत्रों का उच्चारण करते हुए उन्हें सिंदूर और चमेली का चढ़ाएं। सिंदूर को आप चमेली के तेल या घी में मिलाकर भी अर्पित कर सकते हैं। मान्यता है कि हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने से भाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में अच्छे परिणाम मिलते हैं। सिंदूर को खासतौर से ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है।
हनुमान स्तुति
हनुमानअंजनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिंगाक्षोअमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चेव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।
राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन।।