कश्मीरी पंडित संगठनों ने कहा कि घाटी में 1990 के दशक जैसी स्थिति वापस आ रही है। जम्मू-कश्मीर पीस फोरम और कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अध्यक्ष सतीश महलदार ने आरोप लगाया कि प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है। उन्होंने पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहने वाले धमकी भरे पत्रों पर चिंता जताई है।
नई दिल्ली। कश्मीरी पंडित (kashmiri pandit) संगठनों ने कहा कि घाटी में 1990 के दशक जैसी स्थिति वापस आ रही है। जम्मू-कश्मीर पीस फोरम और कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (KPSS) के अध्यक्ष सतीश महलदार (Satish Mahaldar) ने आरोप लगाया कि प्रशासन अल्पसंख्यक समुदाय (Minority) की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है। उन्होंने पंडितों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहने वाले धमकी भरे पत्रों पर चिंता जताई है।
सतीश महलदार (Satish Mahaldar) ने कहा कि पिछले दो दिनों से एक बार फिर कश्मीरी पंडितों (kashmiri pandits) को विशेष रूप से लश्कर-ए-इस्लाम (Lashkar-e-Islam) द्वारा धमकी भरा पत्र जारी किया गया है, जो सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है। हम अपने घरों में भयभीत हैं और डर के माहौल में सांस ले रहे हैं। जम्मू, श्रीनगर और दिल्ली में सभी अधिकारियों और रिश्तेदारों से हम खुद को बचाने की गुहार लगाते हैं।
‘कश्मीर में बहुलवाद हमारी विरासत है, इसे बचाना होगा’
सतीश महलदार (Satish Mahaldar) ने कहा कि मैं मुफ्ती, उलेमा, मौलवी और घाटी के अन्य लोगों से अपील करता हूं कि वे आगे आएं और बहुलवादी समाज को बचाएं। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि बहुलवाद हमारी विरासत है। उन्होंने कुलगाम जिले के एक स्थानीय राजपूत सतीश सिंह (Satish Singh) की हालिया हत्या का भी जिक्र किया, जिसकी अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। उन्होंने कहा कि हत्या से कश्मीर में रहने वाले पूरे अल्पसंख्यक समुदाय (Minority) में खलबली मच गई।
कश्मीर में गैर-स्थानीय लोगों पर हमले फिर बढ़ रहे
5 अगस्त 2019 के बाद, जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया है। कश्मीर में गैर-स्थानीय मजदूरों, ड्राइवरों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की रुक-रुक कर हत्याएं देखी गई हैं। हाल के हफ्तों में हमलों के ताजा दौर में दक्षिण कश्मीर के कई हिस्सों में कम से कम सात गैर-स्थानीय मजदूरों को गोली मार दी गई। उन्हें घायल कर दिया गया। हाल ही में बॉलीवुड फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) ने कश्मीरी पंडितों के प्रवास के मुद्दे पर विवादास्पद बहस छेड़ दी है। यह समुदायों व विचारों का ध्रुवीकरण किया है।