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लखनऊ विश्वविद्यालय ने रचा इतिहास, प्रो.ध्रुव सेन सिंह राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार से हुए सम्मानित

लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) के भूविज्ञान विभाग (Geology Department) के प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह (Prof. Dhruv Sen Singh) को मंगलवार को केंद्र सरकार ने भूविज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार 2019 (National Geology Award 2019) से सम्मानित किया है, जो भूविज्ञान के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय (Lucknow University) के भूविज्ञान विभाग (Geology Department) के प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह (Prof. Dhruv Sen Singh) को मंगलवार को केंद्र सरकार ने भूविज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार 2019 (National Geology Award 2019) से सम्मानित किया है, जो भूविज्ञान के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार है। प्रोफेसर ध्रुव सेन सिंह को दिल्ली के डॉ.अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में भूविज्ञान के सर्वोच्च पुरस्कार ‘राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार-2019’ से केंद्रीय खान मंत्री प्रहलाद जोशी ने सम्मानित किया। इस मौके पर गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे।

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बता दें कि खान मंत्रालय, भारत सरकार भूविज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार प्रत्येक वर्ष प्रदान करता है । इस योजना का उद्देश्य मौलिक भूविज्ञान के क्षेत्रों के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियों और उत्कृष्ट योगदान के लिए व्यक्तियों और टीमों को सम्मानित करना है। यह पुरस्कार पिछले 10 वर्षों में भारत में अधिकांश भाग के लिए किए गए कार्यों के माध्यम से किए गए योगदान के आधार पर दिया जाता है।

प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने इसे भू-पर्यावरण अध्ययन के लिए पुरावातावरण, जलवायु परिवर्तन और मानसून परिवर्तन शीलता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नदियों, ग्लेशियरों और झीलों का विशेष अध्ययन किया है। प्रो. सिंह द्वारा भारत में हिमालय और गंगा के मैदान में और आर्कटिक में भी हिमनदों, नदी और झीलों का क्रमवार अध्ययन करके पुराजलवायु और पर्यावरण का विश्लेषण किया गया है।

प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में यह वर्णन किया है कि गंगोत्री ग्लेशियर के तेजी से पीछे हटने का कारण इसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं। केवल ग्लोबल वार्मिंग ही इसके लिये जिम्मेदार नहीं है। इसके अतिरिक्त गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे हटने की दर लगातार घट रही है जो 1970 में 38 मीटर/वर्ष से 2022 में 10 मीटर/वर्ष हो गई है जो ग्लोबल-वार्मिंग के अनुसार नहीं है। प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में केदारनाथ त्रासदी के कारण और निवारण की भी विवेचना की है। प्रो. सिंह ने गंगा के मैदान में, पुराजलवायु के लिए झीलों का विश्लेषण किया है।

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इसके परिणामस्वरूप क्षैतिज कटान को एक स्वतंत्र खतरे के रूप में बताया है है जो कि नदी जनित प्राकृतिक आपदा में एक अंतर्राष्ट्रीय योगदान है। प्रो. सिंह ने एक छोटी नदी बेसिन छोटी गंडक का संपूर्ण भूवैज्ञानिक विश्लेषण किया।

प्रो. सिंह ने समाज में वैज्ञानिक जागरूकता लेन के लिए सदा प्रयास किया है। प्रो. सिंह द्वारा “भारतीय नदियों: वैज्ञानिक और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं” को स्प्रिंगर द्वारा 2018 में संपादित किया गया है जिसका 28000 से ज्यादा है। जिसमें भारत की सभी प्रमुख नदियों पर 37 अध्याय शामिल हैं। प्रो. ध्रुव सेन सिंह, भारत के प्रथम एवं द्वितीय आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव क्षेत्र ) अभियान दल 2007, 2008 के सदस्य रह चुके हैं। प्रो. सिंह विज्ञान रत्न, शिक्षक श्री, सरस्वती सम्मान से उत्तर प्रदेश सरकार से सम्मानित हैं।

 

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