उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव के बीच आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपर मुख्य सचिव से लेकर थानेदार तक के पदों पर दलित अफसरों की तैनाती के बारे में जानकारी मांगी है।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव के बीच आजाद समाज पार्टी के प्रमुख और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने अपर मुख्य सचिव से लेकर थानेदार तक के पदों पर दलित अफसरों की तैनाती के बारे में जानकारी मांगी है। उपचुनाव से पहले चंद्रशेखर आजाद के इस पत्र से सियासी सरगर्मी बढ़ गयी है। दरअसल, दलित वोट बैंक को लामबंद करने के लिए सभी पार्टियां जुटी हुई हैं।
सांसद चंद्रशेखर आजाद ने पत्र नियुक्ति विभाग, गृह विभाग और डीजीपी को भी भेजा है, जिसमें इस बाबत जानकारी मुहैया कराने को कहा है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा, प्रिय मनोज कुमार सिंह जी…जय भीम, मैं आपका ध्यान कई एससी/एसटी संगठनों द्वारा पूर्व में उठाएं गए एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर आकर्षित करना चाहता हूं, आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है वर्तमान में प्रदेश में 75 जिले हैं। प्रदेश की इस बड़ी जनसंख्या की तकरीबन 22% आबादी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की है।
भारत के संविधान में जाति के आधार पर शोषण, अत्याचार व गैर बराबरी को खत्म करने व अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। मेरी चिंता के केंद्र में मेरा गृह राज्य उत्तर प्रदेश है क्योंकि यहां जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं। हैरत की बात ये है की अन्याय, अत्याचार व उत्पीड़न होने पर वंचित वर्ग के पीड़ितों को थाने से बिना FIR लिखे भगा देने की घटना, पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता से पेश आने की घटना, FIR दर्ज भी होती है कमजोर धाराएं लगाने की घटना, पीड़ितों द्वारा दी गई तहरीर बदल देने की घटना प्रकाश में आती रहतीं हैं।
मेरी पार्टी के पदाधिकारियों व मैंने निजी तौर पर अनुभव किया है कि वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामलों में स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन का रवैया ज्यादातर मामलों में अत्यंत असंवेदनशील या आरोपी पक्ष की तरफ झुकाव का ही रहता है। किसी सभ्य समाज के निर्माण में यह स्थिति न सिर्फ बड़ी रुकावट बल्कि पीड़ादायक भी है। भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के नागरिकों को एक समान न्याय, जीने की स्वतंत्रता व सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को पृथक-पृथक दायित्व दिए गए हैं। इनमें से कार्यपालिका वो महत्वपूर्ण स्तंभ है जो कि स्थानीय स्तर पर वंचित वर्गों के शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न व हिंसा को रोकने का सबसे प्रभावी स्तंभ है।
उत्तर प्रदेश में प्रशासन/पुलिस महकमे में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व संबंधी जानकारी प्रदान करने हेतु @ChiefSecyUP मान्यवर मनोज कुमार सिंह जी को पत्र लिखा।@ChiefSecy_UP @dgpup pic.twitter.com/MrD82UkpSz
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— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) November 1, 2024
इसके साथ ही पत्र में लिखा, परंतु प्रदेश की प्रशासनिक सेवा व पुलिस प्रशासन में बैठे ज्यादातर अधिकारी/कर्मचारी इस अन्याय अत्याचार के खिलाफ लचर व गैर जिम्मेदाराना रवैया रखते हैं। इन समस्या के मूल में जो सबसे बड़ा आरोप लगता वो है कि निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों/कर्मचारियों/पुलिसकर्मियों को प्रतिनिधित्व न दिया जाना बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक व थानाध्यक्षों की जाति देखकर नियुक्ति करना। इसलिए संसद सदस्य होने के साथ ही गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और SC/ST कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते मैं तथ्यों के साथ समझना चाहता हूं कि वास्तव में इन आरोपों में कितना दम है?
इन पदों पर दलितों की तैनाती का मांगा हिसाब
मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव, सचिव, मंडलायुक्त, डीजी, एडीजी, आईजी, डीआईजी, डीएम, एसएसपी, एसपी, एडीएम, थानेदार।