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सुधा कृष्णमूर्ति दृढ़ निश्चय और शालीनता की हैं अनुपम मिसाल, जिनको देखने के लिये लोगों को आसमान तक ऊंची करनी पड़ती हैं नजरें

भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म पुरस्कार’ वर्ष 2023 की पद्म भूषण विजेता सुधा कृष्णमूर्ति की जिंदगी मेहनत और संघर्षों की अद्भुत कहानी है। उद्योग जगत में सफलता की नयी कहानी लिखने वाली आईटी कंपनी इन्फोसिस के सोशल सर्विस विंग इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा कृष्णमूर्ति ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने सदैव अपनी जिंदगी सादगी और समाज कल्याण के साथ जीने में यकीन रखा है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म पुरस्कार’ वर्ष 2023 की पद्म भूषण विजेता सुधा कृष्णमूर्ति (Padma Bhushan winner Sudha Krishnamurthy) की जिंदगी मेहनत और संघर्षों की अद्भुत कहानी है। उद्योग जगत में सफलता की नयी कहानी लिखने वाली आईटी कंपनी इन्फोसिस (IT company Infosys) के सोशल सर्विस विंग (Social Service Wing) इन्फोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की अध्यक्ष सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने सदैव अपनी जिंदगी सादगी और समाज कल्याण के साथ जीने में यकीन रखा है। यही ‘सादगी और मन की उदारता’ उन्हें इस मुकाम पर ले आयी हैं, जिसे देखने के लिये लोगों को आसमान तक नजरें ऊंची करनी पड़ती है।

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सुधा कुलकर्णी (Sudha Kulkarni) का जन्म मराठी परिवार में 19 अगस्त 1950 में उत्तरी कर्नाटक में शिगांव में प्रसिद्ध सर्जन डॉ. आरएच कुलकर्णी के यहां हुआ था। उन्हें बचपन से ही पढ़ाई का शौक था। वे हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आती थीं। उन्होंने बीवीबी कालेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, हुबली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया। वर्ष 1974 में उन्होंने ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस’ से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स डिग्री हासिल की। उन्हें स्वर्ण पदक भी मिला। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने टाटा इंजीनीयरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी (टेल्को) में एक ग्रेजुएट ट्रेनी के रूप में करियर की शुरुआत की।

सुधा मूर्ति एक कुशल इंजीनियर होने के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक प्रतिभावान शिक्षिका और एक अत्यंत संवेदनशील लेखिका भी हैं। कम्प्यूटर साइंस के क्षेत्र में उन्हें महिलाओं के लिए बेहद प्रतिष्ठित कालेज महारानी लक्ष्मी अम्मानी कालेज की स्थापना करने का श्रेय जाता है। वे कंप्यूटर साइंस पढ़ाने के साथ-साथ साहित्य लेखन भी करती हैं। मराठी, कन्नड़, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं पर समान पकड़ रखने वाली सुधा मूर्ति की दर्जन भर से अधिक आलेख व पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । ‘आप जो भी काम करें, अच्छी तरह से करें’ के मूल उद्देश्य का पालन करने वाली सुधा मूर्ति को वर्ष 2006 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

शक्तिशाली नारी शक्ति 2020 के सर्वे ‘नारायणी नमः’ में फेम इंडिया मैगजीन और एशिया पोस्ट सर्वे द्वारा समाजिक स्थिति , प्रभाव , प्रतिष्ठा , छवि , उद्देश्य , समाज के लिए प्रयास , देश के आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव जैसे दस मानदंडों पर किए गए स्टेकहोल्ड सर्वे में देश की प्रमुख 20 शक्तिशाली नारी में इंफोसिस फाउंडेशन की हेड सुधा कृष्णमूर्ति प्रमुख स्थान पर है । सुधा कृष्णमूर्ति ने तकनीकी के साथ लेखन और समाज सेवा के भी बहुत काम किए हैं। उन्होंने कई पटकथाएं लिखी हैं। जी टीवी पर प्रसारित होने वाले ‘डॉलर बहू’ की पटकथा सुधा के इसी नाम से प्रकाशित उपन्यास पर आधारित थी। वे एक ख्याति प्राप्त लेखिका भी हैं। उन्होंने कन्नड और अंग्रेजी भाषा में कई रचनाएं लिखी हैं।

टाटा की टेल्को कंपनी में किसी महिला कर्मचारी के न होने की शिकायत सुधा ने कंपनी के चेयरमैन से की। उन्होंने तुरंत सुधा को विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया और उनकी नियुक्ति कर दी। इसके बाद उन्होंने वालचंद ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज में सीनियर सिस्टम एनालिस्ट के पद पर ज्वॉइन किया। 1996 में इंफोसिस फाउंडेशन (Infosys Foundation) की स्थापना के बाद से वे इसकी ट्रस्टी हैं। बेंगलुरु के एक प्रतिष्ठित कॉलेज की विजिटिंग प्रोफेसर भी हैं।

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पुरस्कार व सम्मान

सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए बसवा श्री 2013 पुरस्कार, डॉक्टरेट ऑफ लॉ की उपाधि (2011), पद्म श्री, आरके नारायण पुरस्कार (2006), राजा- लक्ष्मी पुरस्कार (2004), वुमन ऑफ द ईयर (2002), मिलेनियम महिला शिरोमणि, कर्नाटक राज्योत्सव, ओजस्वनी पुरस्कार (2000), बेस्ट टीचर पुरस्कार (1995) के अलावा सुधा मूर्ति को कई अन्य पुरस्कार, सम्मान और उपाधियां मिल चुकी हैं।

ऐसे परवान चढ़ी नारायण मूर्ति-सुधा कृष्णमूर्ति की प्रेम कहानी, बने आदर्श पति-पत्नी

विवाह से पहले सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) का नाम सुधा कुलकर्णी (Sudha Kulkarni) था। आज सुधा और नारायण मूर्ति एक आदर्श पति-पत्नी के रूप में जाने जाते हैं। इनके मिलन की कहानी बड़ी रोचक है। इनकी पहली मुलाकात सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) के मित्र प्रसन्न ने पुणे में करवाई थी। उस समय सुधा प्रसन्न से जो किताब पढ़ने के लिए लेती थीं, उनमें नारायण का नाम लिखा रहता था, जिसकी वजह से सुधा के मन में नारायण की एक अलग छवि बन गई थी, लेकिन पहली मुलाकात के बाद सुधा कृष्णमूर्ति को पता चला कि नारायण तो उनकी आशा के विपरीत बेहद शर्मीले और अंतर्मुखी हैं। कुछ दिनों बाद सुधा कृष्णमूर्ति  (Sudha Krishnamurthy) के मित्रों ने पुणे के ग्रीन फील्ड होटल में ठहरने का प्लान बनाया।

वहां नारायण मूर्ति  सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) से अकेले मिलना चाहते थे, लेकिन वे उस ग्रुप की अकेली लड़की थी तो यह मुलाकात संभव नहीं थी। अगले दिन सुबह सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) जब दर्जी के पास पहुंची तो नारायण मूर्ति  (Narayana Murthy) को वहां पहले से इंतजार करते हुए पाया। इसके बाद दोनों में दोस्ती हो गई और वे मिलने लगे। सुधा के दोस्तों ने उन्हें बताया कि नारायण मूर्ति (Narayana Murthy) उनसे प्यार करते हैं और उन्हें इम्प्रेस करना चाहते हैं। लेकिन वे इस बात को नहीं मानीं। एक दिन नारायण ने सुधा से कहा कि मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं और शायद कभी अमीर भी न बन सकूं, लेकिन तुम बहुत सुंदर और प्रतिभाशाली हो। तुम्हें जो चाहिए, वो मिल जाएगा पर क्या तुम मुझसे शादी करोगी? सुधा ने सोचने के लिए वक्त मांगा। वे हुबली गईं और अपने पिता से नारायण के बारे मे बात की। चूंकि नारायण कर्नाटक से ही थे तो वे भी तैयार हो गए। अगले दिन 10 बजे रेस्टोरेंट में मिलना तय हुआ।

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नारायण समय पर नहीं पहुंचे तो सुधा के पिता ने कहा कि मैं अपनी बेटी का हाथ उस इंसान को कैसे सौंपू, जो पहली ही मीटिंग में समय पर नहीं आ सकता। ख़ैर करीब दो घंटे की देरी से नारायण सुर्ख लाल शर्ट में वहां पहुंचे और बताया कि उन्हें जरूरी काम से मुम्बई जाना पड़ा और आते वक्त ट्रैफिक के कारण देर हो गई। चर्चा के दौरान सुधा के पिता ने नारायण से पूछा कि वे क्या करते हैं? तो नारायण ने बताया कि वे कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बनना चाहते हैं और उनकी इच्छा एक अनाथालय खोलने की है। यह सुनने के बाद सुधा के पिता ने कहा कि मैं ऐसे इंसान से अपनी बेटी की शादी हरगिज़ नहीं कर सकता, जिसके पास परिवार चलाने के लिए एक भी रुपए न हों और वह राजनीति करने और अनाथालय बनाने का सपना देखे।

इस घटना के बाद तीन साल तक दोनों बैंगलोर के अलग-अलग रेस्टोरेंट में मिलते रहे। नारायण के पास पैसा न होने की वजह से नारायण के हिस्से के बिल का भुगतान भी सुधा को करना पड़ता था। 1970 के अंत में नारायण पाटनी कम्प्यूटर्स पुणे में असिस्टेंट मैनेजर की नौकरी करने लगे। सुधा के पिता भी शादी के लिए राजी हो गए। फरवरी 1978 सुधा और नारायण की शादी हो गई। फिर नारायण को नौकरी के सिलसिले में अमेरिका जाना पड़ा, जहां दोनों तीन महीने तक रहे। 1981 में जब नारायण नौकरी छोड़ खुद का बिजनेस शुरू करना चाहते थे तो सुधा उनके पक्ष में नहीं थी, क्योंकि वे नहीं चाहती थीं उनकी पटरी पर आई जिंदगी में फिर रुकावट आए। मगर उन्होंने नारायण को नहीं रोका, क्योंकि वे उनका सपना किसी भी हाल में टूटते हुए नहीं देखना चाहती थीं।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक हैं इनके दामाद

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक (British Prime Minister Rishi Sunak) भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति और सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति (Infosys founder Narayana Murthy) व उनकी पत्नी सुधा कृष्णमूर्ति (Sudha Krishnamurthy) के दामाद हैं। ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ने अक्षता मूर्ति (Akshata Murthy) से 2009 में शादी कर किये। शादी समारोह भारत के बेंगलुरु में हुआ था। अक्षता कि इन्फोसिस में 0.091 फीसदी हिस्सेदारी है जिससे उनके पास करीब 900 मिलियन डॉलर की संपत्ति है जिससे इंग्लैंड की सबसे अमीर महिलाओं में से एक है।

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