Teacher day par nibandh: सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बनराय, सात समुंद्र की मासि करूं, गुरु गुण लिखा न जाये...ये पंक्तियां गुरु के लिए बिल्कुल सटीक बैठती हैं। दरअसल, गुरु के गुणों को लिखने के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज, सारे जंगल को कलम और सातों समुद्रों को स्पाही बनाकर भी नहीं लिखा जा सकता।
Teacher day par nibandh: सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बनराय, सात समुंद्र की मासि करूं, गुरु गुण लिखा न जाये…ये पंक्तियां गुरु के लिए बिल्कुल सटीक बैठती हैं। दरअसल, गुरु के गुणों को लिखने के लिए सम्पूर्ण पृथ्वी को कागज, सारे जंगल को कलम और सातों समुद्रों को स्याही बनाकर भी नहीं लिखा जा सकता।
गुरु शब्द को किसी भी पैमाने से नहीं मापा जा सकता है। गुरु का दर्जा भगवान से भी बड़ा होता है। गुरु अपने शिष्य पर अपना ज्ञान समर्पित करके उसको बनाने की तैयारी में, अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। गुरु और शिष्य का दर्जा आज भी अपनी मिसाल कायम किए हुए है।
यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी आगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण होता है। देशभर में पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। समय बदलने के साथ ही शिक्षक दिवस को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में अपने अपने तरीके से लोग इसे मनाते हैं। इस खास मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं कि शिक्षक दिवस पर हिंदी में 10 लाइन या फिर 100 शब्द या फिर 250 शब्दों में इसका महत्व समझाते हुए निबंध या लेख कैसे लिखें…इसके साथ ही इस खास मौके पर बधाई संदेश कैसे दें….
बता दें कि, देशभर में पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति और देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) का जन्म हुआ था। राधाकृष्णन शास्त्र के ज्ञाता, दार्शनिक, सनातन संस्कृति के संवाहक और प्रख्यात विचारक थे। राधाकृष्णन के सम्मान और शिक्षा के प्रति अभिभावकों और बच्चों को जागरूक करने के उद्देश्य से शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
स्कूलों में होता है खास आयोजन
शिक्षक दिवस के दिन स्कूलों और कॉलेजों में खास आयोजन किया जाता है। इस दिन बड़ी धूम धाम से गुरु और शिष्य मिलकर इसे मनाते हैं। इस दिन खास शिष्य अपने गुरु को सम्मानित भी करते हैं। हालांकि, समय के बदलाव के साथ ही अब इस अयोजनों में भी बदलाव देखा जा रहा है।
उपसंहार
वर्तमान समय में अब शिक्षा के मायने बदलने लगे हैं। गुरुकुल से शुरू हुई इस पंरपरा में काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में गुरु और शिष्य के रिश्ते भी कलंकित हो रहे हैं। दरअसल, शिक्षा को कुछ लोगों ने अब व्यवसाय बना लिया है। लिहाजा, वे इस पंरपरा को आघात पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इन सबके बीच छात्र औ शिक्षक दोनों को ही दायित्व है कि वे इस महान परंपरा को बेहतर ढंग से समझें और एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना सहयोग प्रदान करें।